Sangh Pravartiya
महासंघ की व्यवस्थापन सुचारू रूप से चले इस हेतु विभिन्न समितियों का गठन किया गया है। इनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।
01 श्री अरिहन्त अर्थ व्यवस्था समिति :
महासंघ को अनुदान, सदस्यता शुल्क, आर्थिक सहायता योजनायें, प्रकाशनों की विक्री आदि से धन राशि प्राप्त होती है। इस संचित राशि को राष्ट्रीयकृत बैंक में सुरक्षित रखा गया है। अर्थव्यवस्था विश्वस्त मंडल के निर्देशानुसार चलती है। विश्वस्त मंडल द्वारा नियम-उपनियम बनाये गये हैं। दैनिक कार्य संचालन हेतु एक चालू खाता (Curren Account) भी खोला गया है | गया है। खजांची (Cashier) के पास मर्यादित रकम नकद रखी जाती है।
02 श्री अरिहन्त विनियोजन एवं सम्पत्ति व्यवस्था समिति :
महासंघ ने दिल्ली में कन्द्रीय कार्यालय के लिये लगभग 170 वर्ग मीटर भूतल (Ground Floor) ख़रीदा एंवम 170 वर्ग मीटर तलघर (Basement) का स्थान खरीदा है। अब तक अनेक गाँवों, शहरों में अरिहंत भवन बन चुके हैं और भी बनते जा रहे हैं। महासंघ की संपदा का व्यवस्थापन इस समिति द्वारा किया जाता है। महासंघ की इस गतिविधि को सदा विकासशील रखने में यह समिति अपना योगदान देती है।
महासंघ की यह विशेषता है कि महासंघ के बने ‘ अरिहन्त भवन ‘ में जैन समाज के किसी भी वर्ग के कोई भी पादविहारी त्यागी महात्मा पधारकर धर्म प्रचार कर सकते हैं और अहिंसक साधना से जुड़े जैनेतर समाज को भी कार्यक्रम के लिये भवन देने का प्रावधान है।
03 श्री अरिहन्त स्वाध्याय व्यवस्था समिति :
स्वाध्याय की गतिविधि में सामायिक, प्रतिक्रमण, प्रतिपूर्ण पौषध, णमोत्थुणं जाप, समीक्षण ध्यान आदि प्रवृत्तियों का समावेश है। श्रावक- श्राविकाओं को इन प्रवत्तियों के संबंध में विशेष जानकारी देना, प्रेरित करना एवं समाज में इन प्रवृत्तियों का प्रचार-प्रसार करना ये प्रमुख लक्ष्य हैं। इस गतिविधि में विविध उपक्रम क्रियान्वित है।
असामायिक उपक्रम: श्रावक-श्राविकाओं को सामायिक साधना का वेशिष्ट्य हृदयग्राही सरल भाषा में समझाना, प्रतिदिन सामायिक साधना के लिये हृदयस्पर्शी ढंग से प्रेरित करना मुख्य लक्ष्य है। प्रतिदिन सामायिक करने वाले भाई-बहिनों के नाम एवं परिचय संकलित करना प्रस्तावित है।
सामायिक साधना अनुष्ठान उपक्रम : सदियों से श्रावक समाज द्वारा की जा रही सामायिक अंतरंग आनन्द, कर्म-निर्जया, हल्कापन (Relaxation) को अनुभूति कैसे हो, इस विषय में महासंघ के आचार्य श्री ने आगम-सम्मत अनूठे प्रयोग किये हैं और कर रहे हैं। इससे सामाजिक साधना के क्षेत्र में नयी क्रान्ति का सूत्रपात हुआ है।
* प्रतिक्रमण उपक्रम : प्रतिक्रमण याद करने वालों को प्रोत्साहित करना, उन्हें आगे श्रावक- श्राविका बनाना आदि कार्य किये जाते हैं। आज तक हजारों भाई-बहनों को महासंघ के त्यागी वर्ग के द्वारा प्रतिक्रमण याद करवाया गया है।
* पौषध उपक्रम : प्रतिपूर्ण पौषध आराधना महासंघ की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गतिविधि है। आचार्य श्री ने प्रतिपूर्ण पौषध की आगम-सम्मत व्याख्या कर के हजारों श्रद्धालु श्रावक-श्राविकाओं को इस गतिविधि के लिये प्ररित किया है। गत कुछ वर्षो में आचार्य श्री के सान्निध्य में प्रतिमाह सैंकड़ों धर्मष्ठि श्रावक-श्राविका प्रतिपूर्ण पौषध आराधना करते रहे हैं। ऐसा भी देखने में आया हे कि जिन्होंने संवत्सरी के दिन भी पौषध आराधना नहीं की, वे भी प्रतिमाह पौषध करने लगे हैं। प्रतिवर्ष प्रतिपूर्ण पौषध किये जा रहे है, यह अपने आप में अद्वितीय फल श्रुति है।
#* णमोत्थुणं जाप उपक्रम : शक्रस्तव / प्रणिपात सूत्र / णमोत्थुणं जाप महासंघ की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण और विलक्षण साधना परक गतिविधि है। आचार्य श्री ने शक्रस्तव की आगम-सम्मत हृदयस्पर्शी सुबोध-सरल व्याख्या की है। विभिन Sal में वर्षावास के पावन काल में कम से कम 1008 जोड़ों के एक साथ णमोत्थुणं जाप का सफल आयोजन लगातार हो रहा है। इस जाप की विविध विधियाँ बतायी गयी है। (इसके लिये जैनदूत का “णमोत्थुणं विशेषांक दिसम्बर, 2012 देखें।) प्रतिदिन तेरह णमोत्थुण्ं का जाप अत्यन्त व्यावहारिक एवं लाभप्रद है। प्रतिदिन 108 बार णमोत्थुणं का जाप लगातार सवा नौ मास करने से विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है। आचार्य श्री के द्वारा एक अति विशिष्ट शिविर में श्रद्धालु भाई-बहिनों को णमोत्थुणं साधना में प्रशिक्षित किया जाता | णमोत्थुणं पाठ से अब तक लाखों लोग प्रभावित हो चुके हैं। देश विदेश में स्थित भाई-बहिन जाप कर रहे हैं।
णमोत्थुणं की स्नातकोत्तर उपाधि : णमोत्थुणं के पाठ को स्वयं में एवं दूसरों में कैसे प्रभावी बनाया जाये इसके लिये स्नातकोत्तर उपाधि (Master Degre) का अभिनय अनुष्ठान महासंघ के आचार्य श्री ने चलाया है।
*समी क्षण ध्यान उपक्रम : अरिहन्त देवों द्वारा प्ररूपित समी क्षण ध्यान का आचार्य श्री नानेश ने प्रवर्तन किया । जैन दर्शन की ध्यान प्रक्रिया स्वतंत्र एवं विशेष है। आचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. प्रति वर्ष शिविर आयोजित कर के धर्मनिष्ठ श्रावक- श्राविकाओं को ध्यान प्रवत्ति का विशेष ज्ञान दे कर
साधना में तन््मयता एवं एकाग्रता साधने के लिये प्रशिक्षण देते हैं। हजारों श्रावक- श्राविकाओं ने आत्मसमाधि की अवस्था उत्पन्न करने के इस सशक्त साधन का अनुभव किया है।
04 श्री अरिहन्त युवा महासंघ:
महासंघ के अंतर्गत एक युवा संघ का गठन किया गया है। युवा-युवतियों को व्यसनमुक्त बना कर उनकी शक्ति एवं ऊर्जा को रचनात्मक कार्यो में संलग्न करना इसका प्रमुख लक्ष्य है। युवा-शक्ति सामाजिक एवं आध्यात्मिक गतिविधियों में सक्रिय हो जाये तो धर्म का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। युगलिक (पति-पत्नी), पारिवारिक (माता-पिता, भाई-भाई- बहन, बच्चे) आदि समस्याओं का समाधान करना इस संघ की महत्त्वपूर्ण गतिविधि है।
* युवा शिविर उपक्रम– प्रतिवर्ष अविवाहित युवक-युवतियों के लिये आचार्य श्री संस्कार शिविर का आयोजन करते हैं। इसमें बहुत अच्छा प्रतिसाद मिला है। इसमें मात्र युयक-युवतियों को प्रवेश दिया जाता है। इस वातावरण में वे निडर बन कर मन में उठी जिज्ञासाओं को उपस्थित करते हैं और आचार्य श्री उनका ज्ञानपूर्ण, बुद्धिगम्य एवं हृदयस्पर्शी समाधान करते हैं। यह अपने आप में एक अनूठा उपक्रम है, जिससे युवाओं में सुसंस्कार के बीज अंक््रित होने लगते हैं।
#*देंपति शिविर उपक्रम: प्रतिवर्ष विवाहित युगलों के लिये आचार्य श्री पारिवारिक आदि समस्याओं के समाधान हेतु शिविर का आयोजन करते हैं। बड़ी संख्या में विवाहित दम्पति इस शिविर में उपस्थित होते हैं। व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक स्तर पर भी परामर्श दिया जाता है। हजारों परिवारों को इस उपक्रम का लाभ हुआ है। गृहस्थ जीवन धर्ममय आनन्द से जीने के लिये इस उपक्रम में मार्गदर्शन किया जाता है, जिससे पति-पत्नी में समन्वय स्थापित करने में सहायता मिलती है।
05 श्री अरिहन्त किशोर संघ :
महासंघ के अंतर्गत एक किशोर संघ का गठन का प्रावधान किया गया है। भौतिकवाद के इस चरम काल में युवावस्था की अरूणिमा
आते-आते किशोरों की चरित्र की छवि प्रश्नांकित हो रही है। इस अवस्था/ वातावरण में किशोरों के बौद्धिक विकास एवं चारित्र निर्माण करना महासंघ का लक्ष्य है।
* नौनिहाल नवनिर्माण महाभियान : किशोरवयीन बालक-बालिका में ऐसे उच्च संस्कार दृढ़ हो जाये कि भौतिक वातावरण में भी वे विचलित नहीं
हो। आचार्य श्री ने इस दृष्टि से महाभियान चलाया है। इसक अन्तर्गत शिविर आयोजित किया जाता है, जिसमें स्वयं आचार्य श्री मार्गदर्शन करते हैं। सभी संत-सतियाँ जी म.सा. इसमें सहयोग करते हैं।
06 श्री अरिहन्त महिला संघ:
महासंघ के अंतर्गत महिला संघ का भी गठन किया गया है। महिला जागरण, पारिवारिक सुख-शान्ति एवं संस्कार निर्माण, ये महिला संघ के प्रमुख लक्ष्य हैं। पारिवारिक ईकाई में स्त्री का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसे वास्तव में ध्यान में रख कर इस संघ की गतिविधियाँ बनायी जाती है। यह संघ अनेक जनकल्याणकारी कार्यो को संचालित कर रहा है। (जैसे- पाठशाला में आवश्यकतानुसार विद्यार्थी / विद्यार्थिनियों को गणवेश, पुस्तकें, अथवा लेखन सामग्री उपलब्ध कराना।) इस संघ की पूरे देश में कई परिषदें हैं और यह संख्या निरंतर बढ़ रही है। महिला शिविर उपक्रम : घर को स्वर्ग बनाना, सामाजिक उत्थान करना एवं आत्मा से परमात्मा की राह पर चलाना ये इस उपक्रम के प्रमुख लक्ष्य है। प्रतिवर्ष आचार्य श्री की सुसन्निधि में चातुर्मास में एवं शेखे काल में स्थान-स्थान पर यह शिविर लगाये जाते हैं। इस शिविर में अलग-अलग ग्राम-नगरों से महिलायें भाग लेने उपस्थित होती है। स्थानीय स्तर पर भी यह उपक्रम निरंतर हो रहे हैं।
07 श्री अरिहन्त बालक-बालिका मंडली :
महासंघ के अंतर्गत इस मंडली के गठन का प्रावधान है। बालक-बालिकाओं में सुसंस्कार एवं धार्मिक प्रव॒ृत्तियों का बीजारोपण करना इस मंडली का मुख्य लक्ष्य है।
* बालक-बालिका संस्कार शिविर उपक्रम: साप्ताहिक अवकाश, दीपावली एवं गर्मी की छुट्टियों में साधु-साध्वियों की सन्निधि में बालक-बालिकाओं को पारिवारिक संस्कार ( जैसे- बड़ों को प्रतिदिन प्रणाम करना आदि) और धार्मिक शिक्षा (जैसे- नवकार मंत्र पाठ, वंदना, णमोत्थुणं और क्षमतानुसार प्रतिक्रमण, भक्तामर स्तोत्र आदि ) हेतु शिविर का आयोजन किया जाता है। इसमें बड़ी संख्या में बच्चे उपस्थित होते हैं, इसका श्रेय माता-पिता को है। इसके काफी वांछित सुफल प्राप्त हुए हैं।
* शुभम् बालसंस्कार योजना : बालक-बालिकाओं में धर्म संस्कार की नितांत आवश्यकता है। वर्तमान में विलासिता का वातावरण चारों ओर से बच्चों के संस्कारशील मन पर आक्रमण कर रहा | फलतः चरित्रहीन व्यापक होने का संकट गहरा रहा है। माता-पिता को बच्चों का सान्निध्य सुलभ नहीं है। इस स्थिति में गाँव-गाँव, शहर-शहर में धार्मिक पाठशालाओं को संचालित किया जाना अवश्यंभावी है। महासंघ इस दिशा में प्रयासरत है।
08 श्री अरिहन्त जनकल्याण समिति:
शारीरिक स्वस्थता, मानसिक शान्ति एवं आत्मिक आनन्द व्यक्ति के आत्मकल्याण के लिये आवश्यक हैं। इसमें युवा या वृद्ध भेद नहीं है। महासंघ एक बहुआयामी योजना क्रियान्वित करने के प्रति संकल्पबद्ध है। ‘श्री अरिहंत सुखाश्रम ‘ नाम से इस योजना को महासंघ गति देना चाहता है। इस योजना में व्यक्ति शारीरिक उपचार एवं मानसिक सबलीकरण के साथ स्वाध्याय एवं आत्मचिंतन द्वारा आत्मिक आनन्द भी प्राप्त करेंगे। व्यक्ति जितने दिन चाहे रह सकता है, लौटना चाहे लौट सकता है। सुखाश्रम एक ऐसा नन्दनवन होगा, जहाँ का वास्तव्य व्यक्ति के तन, मन एवं जीवन को पुखमय बना देगा।
09 श्री अरिहन्त स्वधर्मी सहयोग एवं छात्रवृत्ति समिति:
जैन समाज का कोई परिवार या व्यक्ति कठिनाई में हो, तो उसे आर्थिक सहयोग दिया जाता है। यह सहयोग गुप्त रूप से किया जाता है। यह श्रेष्ठ प्रवृत्ति पुण्यार्जन का एवं भाग्योद्योत का माध्यम है। स्वास्थ्य चिकित्सा, होशियार बालक की शिक्षा आदि के लिये सहयोग करना प्रमुख लक्ष्य है। अधिक आवश्यकता पड़ने पर दानशूर व्यक्तियों को सम्पक कर के भी छात्रवृत्ति दिलवाई जाती है।
* मेधावी छात्रवृत्ति : (Genius Scholarship) – जैन समाज के मेधावी छात्र आर्थिक दुर्बलता के कारण अपनी शिक्षा से वंचित न रहे, इसलिये उन्हें यथासंभव छात्रवत्ति दी जाती है।
10 श्री अरिहन्त आगम प्रकाशन समिति :
महासंघ की यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति है। समता विभूति, परम उपकारी, जिनशासन प्रद्योतक आचार्य श्री नानेश के सान्निध्य में आगमों का सरल, सुबोध एवं हृदयग्राही प्रकाशन प्रारंभ हुआ। उसी कार्य को महासंघ, आचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. के सान्निध्य में गतिशील करने में तत्पर है। अल्पकाल में ही दशवैकालिक सूत्र, अंतकृद्दशांग सूत्र, उपासकदशांग सूत्र, अनुत्तरोपपातिक सूत्र एवं भगवती सूत्र के भाग-1 का प्रकाशन हो चुका है। अन्य आगमों के प्रकाशन के लिये भी महासंघ प्रयत्नशील है।
11 श्री अरिहन्त सत्साहित्य प्रकाशन समिति :
यह महासंघ की महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति है। धर्म श्रद्धालुओं को स्वाध्याय के लिये सत्साहित्य उपलब्ध हो, यह बहुत आवश्यक है। महासंघ ने अत्यन्त अल्पकाल में आचार्य श्री, संत एवं सतियों की 180 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। यह साहित्य जिसने भी देखा और पढ़ा उसने सराहा है। इस प्रकार महासंघ के प्रकाशन अति लोकप्रिय हो रहे हैं। इस कारण कई पुस्तकों के अनेक बार संस्करण भी छप चुके हैं। अनेक नयी पुस्तके छापेखाने में हैं। पुस्तकों को विविधता है क्योंकि इसमें इतिहास, प्रवचन, गीत, कहानी, उपन्यास आदि जनोपयोगी विधायें हैं। यह साहित्य डाक से मंगाया जा सकता है।
* जैनदूत पत्रिका : यह मासिक पत्रिका महासंघ का मुखपत्र है। इस पत्रिका में नैतिक, आध्यात्मिक, एवं धार्मिक जागरण के विचार जन-जन तक पहुँचाये जाते हैं। पूज्य आचार्य श्री, संत-सतियों के शासन प्रभावना संबंधी गतिविधियों के समाचारों से श्रद्धालुओं को अवगत कराया जाता है। अल्पकाल में ही इस पत्रिका के लगभग 10000 परिवार आजीवन सदस्य बने हैं। इसे और उपयोगी सामग्री से सजा कर प्रस्तुत करने में महासंघ संकल्पबद्ध है।
* अरिहंत दूत : महासंघ के बढ़ते विस्तार को देखते हुए महासंघ ने SAS दूत नाम से एक और पत्रिका का मासिक प्रकाशन कर दिया है। जिससे हजारों की संख्या में श्रद्धालुभक्त जन लाभान्वित हो रहे हैं। इसके संचालन का दायित्व श्री अरिहंतमार्गी जैन महिला महासंघ राष्ट्रीय को दिया गया जो अच्छी तरह से निभा रहे हैं।
* विशेषांक प्रकाशन : धर्मनिष्ठ श्रावक- श्राविकाओं की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए महासंघ ने विशेषांक भी प्रकाशित किये हैं। 2007 में आचार्य श्री ज्ञानेश का पदारोहण विशेषांक (प्रथम खण्ड), 2008 में आचार्य ‘पदारोहण ‘ विशेषांक (द्वितीय खण्ड), 2010 में स्वर्णजयंति विशेषांक, 2012 में णमोत्थुणं विशेषांक और 2014 में सामायिक साधना विशेषांक प्रकाशित हुए हैं।
* अरिहंत जैन दिनदर्शिका (कलेण्डर) : महासंघ प्रतिवर्ष दिनदर्शिका प्रकाशित करता हे। इसमें महत्त्वपूर्ण उपयोगी सामग्री का समावेश है- दिनांक, वार, महत्त्वपूर्ण दिवस, तिथि, पर्व आदि सामान्य जानकारी के साथ योग-फल, पुष्य नक्षत्र, ज्ञानवृद्धि नक्षत्र, तीर्थंकर कल्याणक आदि विशेष सामग्री का समावेश होता है।
12 श्री अरिहन्त ज्ञान भंडार : (Library)
महासंघ ने दिल्ली में एक पुस्तकालय की व्यवस्था जमाई है। इस पुस्तकालय में लगभग 4000 पुस्तकें संकलित है, और इसमें निरन्तर वृद्धि की जा रही है।
13 श्री अरिहन्त विद्वत् परिषद :
इस परिषद के द्वारा विद्वानों का आदर-सन्मान, उनके द्वारा प्रस्तुत चिन्तन के उपयोगिता की समीक्षा के साथ प्रसार एवं उदीयमान विद्ठानों को प्रोत्साहित किया जाता है। इसी प्रकार प्राकृत एवं संस्कृत विद्दानों द्वारा साधु-साध्वयों के प्रशिक्षण की उत्तम व्यवस्था की जाती है।
14 श्री अरिहन्त विहार सुरक्षा समिति :
महासंघ के साधु-साध्वियों एवं मुमुक्षु जन का देश के अनेक राज्यों में विहार, यह निरंतर प्रक्रिया है। विहार के समय संत-सतियों की सुरक्षा हेतु उचित व्यवस्था करना प्रमुख लक्ष्य है।
15 श्री अरिहन्त संस्कार निर्माण समिति :
व्यसनमुक्ति जैन धर्म की प्राथमिक सीढ़ी है। वर्तमान परिप्रे क्ष्य में इसका बहुत अधिक महत्त्व है। अहिंसा पालन के लिये औषधियाँ, श्रंगार प्रसाधन एवं अन्य प्रतिदिन उपयोग में आने वाली वस्तुओं के संबंध में यथोचित ज्ञान आवश्यक है। समाज में व्यसनों की सूक्ष्मता, सिद्धान्तों की स्पष्ट परिभाषा आदि का प्रसार-प्रचार आवश्यक है। जैनी व्यसनमुक्त हो, यह मुख्य लक्ष्य है।
16 श्री अरिहन्त जीवदया समिति :
‘सभी जीवों को जीवन प्रिय है, मरण नहीं! इस भावना को जन-जन में जागृत करना यह प्रमुख लक्ष्य है। हिंसक प्रवत्तियों का फैलाव, कत्लखाने, मत्स्यपालन केन्द्र और कुक्कुटशाला आदि का निर्माण एवं अण्डे, मांस आदि का सेवन इनका जोरदार विरोध करना तथा गोशालाओं, बकराशालाओं के माध्यम से जीवरक्षा के कार्य में सहयोग देना यह इसका स्वरूप है। अब तक महासंघ देशभर में हजारों पशु-पक्षी बचा चुका है। प्रतिवर्ष एक मोटी राशि इसके लिये लगाई जा रही है।
17 श्री अरिहन्त प्रचार-प्रसार समिति :
आचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. द्वारा स्वयं और उनके संत-सतियों द्वारा कई अभिनव धार्मिक एवं आध्यात्मिक उपक्रम किये जाते हैं। इसकी जानकारी भारतभर में फैले हुए जैन समाज को हो, इसके लिये प्रयास करना इसका मुख्य लक्ष्य है। संवत्सरी की एक तिथि का निश्चय, असांप्रदायिकता अर्थात् जैन समाज की एकता आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर रचनात्मक विचारों का प्रचार एवं प्रसार हो एवं अर्थपूर्ण आदान-प्रदान हो कर इस दिशा में कोई ठोस कार्य हो सके इसके लिये महासंघ प्रयासरत है।
18 श्री अरिहन्त स्वास्थ्य चिकित्सा समिति, जन कल्याण प्रवृत्तियाँ:
जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह भागीरथी प्रयास है। मानव सेवा की इस अनूठी योजना का स्वास्थ्य प्राप्ति प्रमुख लक्ष्य है। दो प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों द्वारा इसमें समाजसेवा का कार्य किया जा रहा है-
1.आधुनिक चिकित्सा (Allopathy) एवं
2. होमियोपेथी (Homeopathy) बीकानेर, जलगांव एवं दिल्ली आदि क्षेत्रों में यह सेवा कार्य संचालित किये जा रहे हैं। इसमें प्रमुख प्रवत्ति चल+चिकित्सालय, मील का पत्थर सिद्ध हुई है। चल+चिकित्सालय योजना वर्तमान में दिल्ली क्षेत्र अपना घर में कार्यरत है। आधुनिक चिकित्सा (Allopathy) द्वारा विशेषत: नेत्र चिकित्सा की जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिविर लगाना, रूण्णों के नेत्रों की जांच कराना, रूग्णों को चिकित्सालय में पहुँँचाना, दवाईयाँ, चश्में देना, मोतियाबिन्दु (cataract) शस्त्रक्रिया करवाना यह कार्य निरंतर रूप से गतिमान हैं। प्रतिवर्ष हजारों व्यक्ति इससे दृष्टिलाभ लेते रहे हैं।
19 श्री अरिहन्त धार्मिक शिक्षा समिति :
जैन धर्म का उचित ज्ञान करा के उसे आचरण में लाने के लिये श्रावक- श्राविकाओं को सक्षम बनाते हुए उन्हें प्रेरित करना यह मुख्य लक्ष्य है। इस दिशा में बोर्ड की परीक्षायें एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन चलता है। यह प्रवत्ति चातुर्मास एवं शेखेकाल में भी चलती है।
20 श्री अरिहन्त अभिनन्दन समिति :
तपस्वी एवं विरक्त भाई-बहनों का अभिनन्दन करना इस समिति का मुख्य लक्ष्य है। यह कार्य कर्म-निर्जरा एवं पुण्यवानी का अर्जन करने वाला है। महासंघ की ओर से तपस्वियों का मुमुक्षुओं का अभिनन्दन-अनुमोदन किया जाता है। तप अनुमोदन अभिनन्दन उपक्रम: तपस्वियों का हार्दिक अनुमोदन अभिनन्दन करना इसका प्रमुख उद्देश है। समाज के लिये यह धर्म प्रभावना का कार्य है। इससे अन्य श्रद्धालुओं को भी प्रेरणा मिलती है। यह आत्मलक्षी योजना है। महासंघ के साथ आप भी सम्मिलित हो सकते हैं और कर्म निर्जरा का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
* मुमुक्षु सत्कार-सन्मान उपक्रम: दीक्षार्थी का दीक्षा लेने से पूर्व सार्वजनिक सत्कार-सम्मान करना धर्मप्रभावना का श्रेष्ठ कार्य है। इससे न केवल अभिनन्दन-अनुमोदन रूप कर्म निर्जरा का लाभ होता है, अपितु औरों को प्रेरणा करने का भी लाभ होता है।
* दीक्षा (अभिनिष्क्रमण) समिति : दीक्षार्थी के लिये आवश्यक वस्त्र एवं उपकरणों को उपलब्ध कराने में भी सहयोग/ योगदान किया जा सकता है। ऐसी व्यवस्था बनाई जाये जिसमें मुमुक्षु को हर समय साधुवेश के सभी उपकरण सहज प्राप्त हो सके ताकि वो क्रीत कर सके । * गुणरत्नों का अभिनन्दन उपक्रम: महासंघ गुणग्राही है। जो भी गुणरत्न श्रावक- श्राविका दृष्टिगत होते हैं, उनका उचित स्वागत-अभिनन्दन करना महासंघ की श्रेष्ठ प्रवृत्ति है। यही नहीं इसी के साथ जो दिवंगत गुणीजन हो चुके हैं उनके परिवार को दिवंगत व्यक्ति के सम्मान में ”अरिहंत वीर चअक्र” का सम्मान दिया जाता है जिससे परिवार में श्रेष्ठ कार्यो के प्रति उत्साह होगा।
21 श्री अरिहन्त समशील प्रवृत्तियाँ एवं अन्य संघहितकारी समितियाँ
जैन धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों को लक्षित कर विभिन्न प्रवृत्तियाँ की जा सकती है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह के वैश्विक विचारों को सकारात्मक रूप से प्रस्तुत करना महासंघ का प्रमुख लक्ष्य है। (नोट : प्रत्येक समिति का संचालन एक मंत्री करता है। वह अपनी समिति के सदस्यों का चयन स्वयं करता है।)
इस प्रकार अनेक महत्त्वाकांक्षी योजनायें श्री अरिहन्तमार्गी जैन महासंघ संचालित कर रहा है। महासंघ ने अल्पकाल मे द्रुतगामी गति से लंबी दूरी पार की है। भविष्य में भी अनेक सृजनात्मक कार्य उद्घाटित होंगे।