Sangh Parichaya
श्री अरिहन्तमार्गी जैन महासंघ श्री अरिहन्त देवों की वाणी से जुड़ा हुआ है। यह एक ऐसा महासंघ है जो सम्प्रदाय की गलियों से निकालकर हमें अरिहन्तों के राजपथ पर लाता है।
अरिहन्त नाम इतना सार्थक नाम है कि इसमें नवकार मंत्र के पाँचों पदों का सहज समावेश हो जाता है। अरिहन्त पद में अरिहन्त तो आ ही जाते हैं, लेकिन सिद्ध भी आ जाते हैं। क्योंकि ‘ णमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताण ‘ में सिद्धों को णमोत्थुणं देते वक्त भी ‘णमोत्थुणं अरिहंताणं’ शब्द तो वही रहते हैं। अत: फलित है कि सिद्धों को भी अरिहन्त नाम से पुकार सकते हैं।
आचार्य, उपाध्याय, साधु ये तीनों पद छतद्यस्थ हैं। ये अरिहन्तों के निर्देशित पथ पर ही आगे बढ़ते हैं। अत: इनका भी अरिहन्त पद में समावेश हो जाता है। इस प्रकार अरिहन्त शब्द में पाँच पदों का समावेश हो जाता है। वैसे भी अरिहन्त पद व्यक्तिवाचक न होकर गुणवाचक है। अरिहन्त पद में सभी तीर्थकर, विहरमान, सिद्ध तो आ ही जाते हैं। इसी कड़ी में मर्यादा पुरूषोत्तम राम एवं हनुमान भी आ जाते हैं। इस प्रकार अरिहन्त पद में सभी श्रेष्ठ आत्माओं , महात्माओं का समावेश हो जाता है। इसलिए इस महासंघ का नाम श्री. अरिहंतमार्गी जैन महासंघ ‘ रखा है।
श्री अरिहन्तमार्गी जैन महासंघ किसी सम्प्रदाय विशेष से जुड़ी संस्था नहीं है। यह तो सीधा वीतराग की आज्ञाओं से जुड़ा व्यक्ति, समाज, जन, राष्ट्र हितकारी सृजनात्मक रूप है। कोई भी व्यक्ति इसका सदस्य बन सकता है। इस महासंघ का गठन वैशाख सुदी ग्यारस, वि.सं. 2061 तदनुसार 1 मई, 2004 शनिवार (वीर निर्वाण 2531) के दिन जो भगवान महावीर का केवलज्ञान के बाद तीर्थ संघ स्थापना दिवस है, उसी दिन हुआ है। युगद्रष्टा आचार्य प्रवर परम श्रद्धेय श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. ने इसी दिन विशुद्ध संयमीय जागृति का महाभियान चलाया था, इसीलिए इस महासंघ की स्थापना भी उसी दिन से हुई है।
जब से महासंघ की स्थापना हुई है, महासंघ द्रुतगति से विकास कर रहा है। हर क्षेत्र में इसने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। महासंघ के आचार्य War श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. आदि सनन््तरत्न एवं महासतिवर्याएँ गाँव-गाँव, नगर-नगर घूम कर धर्म की महती प्रभावना कर रहे हैं, जिस पर हम सबको नाज है। इसी के साथ ही हमारा श्रावक- श्राविका समाज भी धार्मिक व सामाजिक आदि सभी रचनात्मक कार्यो को गति दे रहा है।
एक ही वर्ष में पाँच भाईयों की दीक्षा हुई । सवा करोड़ नवकार मंत्र का जाप 24 घंटों में सम्पन्न हुआ। अनेकों बार 1500-2000 जोड़े सहित अन्य हजारों भाई-बहिनों ने एक साथ बैठ कर शक्रस्तव पाठ से प्रभु की स्तुति की । प्रति मास सेंकड़ों प्रतिपूर्ण पौषध हुए एवं बहुत से ऐसे ऐतिहासिक कार्य सम्पन्न हुए हैं, जो जैन इतिहास में अभूतपूर्व है।
- विशाल दृष्टि (Broad Vision) अहिंसक आचरण से निर्मित अभय द्वारा विश्वशांति के लिये अथक प्रयास ।
- विचक्षण (Prudent Mission) आत्मचेतना के जागरण द्वारा प्रत्येक व्यक्ति का कल्याण
- विधायक सिद्धान्त (Constructive Principle) आगम सम्मत व्याख्यायें, गुणीजनों का आदर-सत्कार, समावेश विचार प्रणाली, संवेदनशीलता , शाकाहार, राष्ट्रनिष्ठा
- विशुद्ध नीति (Degant Ethics) जैन पंच सिद्धान्तों पर प्रबोधन
- विलक्षण संस्कृति (Unique Cultuer) नविरोध, न विरोध, केवल अनुरोध द्वारा संशोध
- विजय लक्ष्य (Victory Goal) सम्प्रदायरहित जिनवाणी सम्मत जैन समाज