Aacharya Shri Ka Parichay

  • जन्म: संवत् 1017 (वीर निर्वाण 2487) आसोज सुदी बारस, :
  • पिता: 2 अक्टूबर, 1960 रविवार को ब्यावर (राजस्थान) : सुश्रावक श्रेष्ठीवर्य श्री मांगीलाल जी सा. मेहता
  • माता: सुश्राविका वीरमाता श्रीमती सौरभकंवर जी मेहता
  • वंश: ओसवाल
  • दीक्षा:  संवत् 2031 (वीर निर्वाण संवत् 2501) ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी, 26 मई, 1974, रविवार को गोगेलाव (राजस्थान)
  • पारिवारिक दीक्षीत जन: ज्येष्ठ भगिनी महासती श्री ललिताश्रीजी म.सा., भतिजा आर्य सुदर्शन जी म.सा, भाई के पौत्र तपस्वी आर्य गीतार्थ मुनि जी म.सा., भाई की पौत्री- साध्वीरत्ना श्री संवेग श्रीजी म.सा., भाई के पौत्र तपस्वी आर्य अनुत्तर जी म.सा., भतिजा बहू- तपस्विनि सिद्धि श्रीजी म.सा. ।
  • दीक्षा गुरु: समता विभूति आचार्य श्री नानेश ।
  • परीक्षा: जैन सिद्धान्त रत्नाकर, आचार्य परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण।
  • भाषा ज्ञान: संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, मराठी आदि भाषाओं का ज्ञान ।
  • अध्ययन: जैन, बौद्ध आदि छ:ह दर्शन, गीता, पुराण, न्याय, आदि नवीन प्राचीन वैज्ञानिक अनेक ग्रन्थों का गंभीर अध्ययन व्याकरण, जैनागम, कर्म-सिद्धान्त आदि दर्शनशास्त्र व आधुनिक विज्ञान के गंभीर अध्येता, अध्यापन में अद्भुत कौशल ।
  • प्रभावी प्रवास: राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, कर्नाटक तमिलनाडु आदि क्षेत्रों में सघन प्रवास |
  • उपाधियों से ऊपर: स्थविर प्रमुख संत-प्रवर आदि अनेक उपाधियों को ससम्मान छोड़ दिया।
  • अद्भुत सृजन शैली : आगम, गद्य, पद्य, कविता, मुक्तक, गीत, इतिहास उपन्यास, कहानी, संस्कृत, प्राकृत आदि अनेक विषयों एवं भाषाओं में 150 से भी अधिक पुस्तकों का प्रणयन ।
  • विशेषता: शास्त्रों की तर्कसंगत हृदयग्राही व्याख्या, एकलव्य व कर्ण की भाँति गुरु सेवा, प्रवचनों का गहरा प्रभाव, घर में शान्ति,व्यसन-मुक्ति, भृव्य जागरण, युवाओं के आकर्षण केन्द्र, णमोत्थुणं एवं भक्तामर स्तोत्र पर अभिनव व्याख्या, प्रतिपूर्ण पौषध का महाभियान । प्रतिमास एक तेला। नव नव चिन्तन स्फुरण ।
  • व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण: जो भी आया आपके संपर्क में वह आपका हो गया। प्रकाण्ड विद्वता में महान ऋजुता, स्वाभाविक सरलता, संयम में सजगता, विचारों में विराटता, कार्य में कुशलता, देशना में दक्षता, जीवन में जागरूकता आदि कई विशेषताएं ।
  • गुरुकृपा : गुरु ने शिष्य के लिए कहा ‘ श्री ज्ञानमुनि जी मेरा प्राण है। मेरी छाया हैं, मेरे लिए सर्वेसर्वा हैं। इनका मुझको, चतुर्विध संघ को एवं युवाचार्य श्री को दिया गया सहयोग विलक्षण है’ इन्हें आचार्य श्री नानेश महामुनिराज, स्थविर प्रमुख, मेरे प्राण आदि अनेकानेक विशेषणों से पुकारते थे। धन्य हैं ऐसे सुशिष्य को, जो गुरु के दिल में बस गये।
  • संयमीय जागृति का महाभियान: भगवान महावीर संघ स्थापना दिवस, वैशाख सुदी ग्यारस, 1मई 2004, शनिवार (वीर निर्वाण 2531) विक्रम सं. 2061 के दिन संघनायक महामुनिराज ने मादीपुर, दिल्ली में संयमीय जागृति का अभियान।
  • संयमीय जागृति की घोषणा: 2 मई, 2004, (वीर निर्वाण 2531) रविवार, संवत् 2061, अरिहंत नगर, दिल्ली में महाभियान की विधिवत घोषणा |
  • आचार्य पद: 30 अप्रैल, 2006 (वीर निर्वाण 2533), रविवार, वैशाख, सुदी 3, संवत् 2063, अरिहंत नगर, दिल्ली
  • विशेषण: “युगद्रष्टा” विशेषण दिल्ली संघ की ओर से और ” वरणाण-दसण-चरित्तधर” विशेषण, सारे समाज की ओर से तपसुन्दरी श्रीमती आशा जी समदड़िया ने 82 की तपस्या करके प्रदान की। इसे महासंघ ने स्वीकार। किया। वचन सिद्ध योगी का विशेषण, व्यावर की पूरी जैन समाज ने दिया।

परिशिष्ट 4 महासंघ के आचार्य प्रवर श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. की विशेष उपलब्धियाँ

  1. आप श्री मात्र 13 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की गुरु नानेश के शिष्यों में सबसे छोटी उम्र के दीक्षित संत आप श्री ही हैं।
  2. आप श्री ने 6 वर्ष की कोमल उम्र में रात्रि भोजन का त्याग एवं 11 वर्ष की उम्र में चौविहार करना प्रारंभ किया।
  3. आप श्री ने 11 वर्ष की उम्र में बीकानेर में कर्मठ सेवाभावी श्री इन्द्रचन्द्र जी म.सा. की सेवा में रहकर आध्यात्मिक अध्ययन करना प्रारंभ कर दिया।
  4. आप श्री का आज्ञा पत्र नोखामंडी में अक्षय तृतीया के अवसर पर हुआ।
  5. आप श्री की दीक्षा तिथि रतनगढ़ में निश्चित हुयी।
  6. आप श्री ने 18 वर्ष की उम्र में आचार्य तक की सारी परीक्षा पास कर ली। 7. दीक्षा के तीन वर्ष आप श्री के नाम के आगे विद्याभिलाषी विशेषण लगा, सन्1977 (वीर निर्वाण 2504) में विद्वान विशेषण लगा तथा उसके बाद सन् 1978 (वीर निर्वाण 2504) में विद्वद्वर्य विशेषण लग गया।
  7. आप श्री ने 16 साल में जिन परीक्षाओं को पास किया जा सकता है, उन्हें | सिर्फ इसाल में पास कर लिया। ऐसा करने वाले भी आचार्य श्री नानेश के | शिष्यों में आप श्री ही हैं।
  8. आप श्री ने 18 वर्ष की उम्र में संस्कृत भाषा में श्लोक व भजन मुक्तक आदि बनाने प्रारंभ कर दिये।
  9. आप श्री अहमदाबाद, भावनगर, मोरवी, राजकोट, मुम्बई आदि क्षेत्रों गुजराती भाषा में ही धारावाहिके प्रवचन करते थे।
  10. आचार्य श्री नानेश ने आपश्री को 24 वर्ष की उम्र में सौराष्ट्र विचरणपर स्वतंत्र सिंघाड़ा बनाकर भेज दिया था।
  11. आप श्री ने बीकानेर, रतलाम, आदि प्रमुख क्षेत्रों में प्रतिदिन श्रावकों में स्वाध्याय कराना प्रारंभ कराया, जो आज तक भी चल रहा है।
  12. राणावास चातुर्मास में आचार्य श्री नानेश की सेवा में आप श्री ने नौ की तपस्या की। इस चातुर्मास में ‘जिणधम्मो’ की विषय वस्तु भी आपके द्वारा एकत्र की गयी।
  13. आपश्री ने सन् 1981 (वीर निर्वाण 2508) उदयपुर चौमासे में भगवती । सूत्र पर लेखन प्रारंभ कर दिया।
  14. आप श्री ने बंबोरा के रास्ते से अहमदाबाद तक लगातार 200 कि.मी. संतों के साथ मिलकर गुरु आचार्य श्री नानेश को डोली में उठाया। 16. आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. के संधारे के समय 12.4.1991 से 21.4.1991 (वीर निर्वाण 2518) तक लगभग दस दिन निमाज (राजस्थान) में आप श्री का विराजना हुआ।
  15. सन् 1992 (वीर निर्वाण 2519) में आचार्य श्री नानेश ने आप श्री को स्थविर प्रमुख, संत प्रवर पद से विभूषित किया।
  16. जयपुर लालभवन चातुर्मास में आप श्री से प्रेरणा पाकर 13 भाईयों ने महिने में छ: पौषध करने का नियम ग्रहण किया।
  17. आप श्री द्वारा सम्यक् व्रती बनाने के लिए 21 सूत्रीय योजना जालंधर, पंजाब चातुर्मास से प्रारंभ की गयी।
  18. भटिण्डा, डोंबीवली, हींगणघाट, बीकानेर, किशनगढ़ आदि क्षेत्रों में बिना चातुर्मास के भी सैंकड़ों, हजारों तेले सम्पन्न हुए।
  19. नवसारी में आप श्री रात्रिकालीन प्रश्नोत्तर में 100 से लेकर 250 सज्जन पहुँचते थे।
  20. आप श्री के व्याख्यानों से प्रभावित हो कर नवसारी चातुर्मास के अन्त तीन दिवसीय विदाई का प्रोग्राम रखा गया।
  21. सापूतारा (गुजरात) में ऋतम्भरा आश्रम के करीबन 450 छात्राओं के सामने आप श्री का प्रभावशाली प्रवचन हुआ। आप श्री की प्रेरणा से सभी छात्राओं ने माँस, शराब आदि कुव्यसनों के विषय को समझकर उन कुव्यसनों को सदा के लिये त्याग कर दिया।
  22. आपश्री ने भगवान महावीर के 2600वाँ जन्म महोत्सव के अवसर पर पूरे वर्ष नियमों का पालन करने हेतु 6 नियम सभी को दिलवाये। वे इस प्रकार है- (अ) रात्रि भोजन का त्याग करना, (ब) प्रतिदिन सामायिक करना, (स) एक वर्ष तक टी.वी. नहीं देखना, (द) एक वर्ष तक पाँच विगय में से एक विगय का त्याग करना, (य) एक वर्ष तक शीलव्रत का पालन करना। (र) सवेरे किसी को खिलाये बिना नहीं खाना ।
  23. आप श्री आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. को कम्पपयडी, रत्नाकरावतारिका, षड्दर्शन समुच्चय आदि कई ग्रन्थ पढ़ाएं। वे आज शान्त- क्रान्ति संघ के आचार्य पद को सुशोभित कर रहे हैं। इस प्रकार अन्य आचार्य, उपाध्याय आदि वरिष्ठ साधु-साध्वियों को भी पड़ाया।
  24. आप श्री का उत्कृष्ट चिंतन है न विरोध, न निरोध बल्कि हो संशोध ।
  25. सन् 2002 (वीर निर्वाण 2529) सरदारशहर चातुर्मास से आप श्री ने हर महिने एक तेला तप करना प्रारंभ किया। आप 12 महिने में 13 तेला तप करते हैं।
  26. आप श्री ने मात्र 19 वर्ष की उम्र में शास्त्र लेखन प्रारम्भ कर दिया। भगवती सूत्र अंतगढ़ सूत्र, दशवैकालिक सूत्र, सुखविपाक सूत्र, उपासकदशांग सूत्र, अनुत्तरोपपातिक सूत्र आदि शास्त्र अब तक लिख दिये हैं।
  27. आप श्री ने अब तक लगभग 50000 कि.मी. से अधिक की यात्रा संपन्न की।
  28. आप श्री अब तक लगभग हर वर्ष तपस्या करते हैं। भावनगर में (सौराष्ट्र) चातुर्मास में 15 की तपस्या की।
  29. आपश्री ने गुजरात में दो संत व लीलाबाई महासती की लगभग 30 साध्वियों को ” षड्दर्शन समुच्चय” नामक ‘न्याय ग्रन्थ’ पढ़ाया। कम्मपयडी, रत्नाकर अवतारिका जैसे कठिनतम ग्रन्थ को आपने कुशलता के साथ कई साधु-साध्वियों को पढ़ाया है। इसी तरह से हर ग्रन्थ को आप पढ़ाने में कुशल हैं।
  30. आपश्री ने पूर्वाचार्यों के इतिहास के रूप में” अष्टाचार्य गौरव गंगा” नामक ग्रन्थ लिखा।
  31. आचार्य प्रवर श्री नानेश के शिष्यों में से उत्तर प्रदेश आदि में सर्व प्रथम प्रवास आप श्री ने ही किया।
  32. आप श्री ने आचार्य श्री नानेश की अस्वस्थ हालात में अपने गुरु का थूक सचमूच हाथों में झेला था। आप श्री सदा गुरु के इशारे के अनुसार ही चलते थे।
  33. आचार्य श्री नानेश ने आपश्री के लिये अपना प्राण, अपना हार्ट व अपना सर्वेसर्वा आदि विशिष्ट शब्दों का प्रयोग किया।
  34. नोखामंडी के बाहर तेल की मिल में हुये प्रवचन में आचार्य श्री नानेश ने अपने हाथों से आप श्री के लिये पाटे पर चौकी लगाने की बहुत कोशिश की। किन्तु आप श्री ने आचार्य श्री को ऐसा करने से रोका।
  35. आप श्री ने साम्प्रदायिक दुराग्रह मुक्त अवस्था बनाने हेतु| श्री अरिहन्तमार्गी जैन महासंघ बनाया। |
  36. दिल्ली में आप श्री की प्रेरणा से एक वर्ष तक हर महिने कम से कम 108 अष्ट प्रहर के पौषध व अधिक में लगभग 526 पौषध हुए। एक वर्ष में कुल मिलाकर 2754 पौषध हुये।
  37. बीकानेर बेल्ट में भयंकर सर्दी के मौसम में 1381 तेले आप श्री की प्रेरणा से हुए।
  38. आप श्री की प्रेरणा से चांदनी चौक, दिल्ली चातुर्मास (सन् 2004) (वीर निर्वाण 2531) में सिर्फ 24घंटे में स्थानक में ही सवा करोड़ नवकार मंत्र का जाप हुआ। जिसकी परफेक्ट गिनती एक करोड़ 31 लाख चार हजार 180 है। एवं व्यावर में (2018) में एक करोड़ 65 लाख 74 हजार में 868 नवकार मंत्र का जाप हुआ।
  39. आप श्री ने विश्व शान्ति व सभी समस्याओं का एक समाधान, हर प्रकार के रोगों का एक उपचार के रूप में शास्त्रीय सशक्त पाठ ‘ णमोत्थु का जाप’ स्थान-स्थान पर करवाया। यह जाप दिल्ली, मुंबई, पूना, बैंगलौर, उदयपुर, जयपुर, मैसूर, औरंगाबाद, अहमदाबाद, हैदराबाद, बेलगाँव, हुबली, होसपेट आदि बड़े-बड़े स्थानों पर सैंकड़ों-हजारों जोड़ों के मध्य हुआ। इसी प्रकार आप श्री ने ये जाप आगरा, ग्वालियर, किशनगढ़, अजमेर, व्यावर, विजयनगर, भीलवाड़ा, जलगाँव आदि शताधिक गाँवों/ शहरों में अभूतपूर्व तरीके से सम्पन्न होते रहे हैं।
  40. आगरा में संघ मंत्री श्री सुशील जी जैन ने व हेमलता जैन ने होली चातुर्मास के अवसर पर प्रवचन सभा में खड़े होकर आप श्री के लिये कहा, हमारा संघ आज तक गुरु के रूप में अमरमुनि जी म.सा. को मानता आया है। किन्तु उनके बाद निर्देशक गुरु के रूप में हमारे संघ के सभी सदस्य संघ नायक आचार्य प्रवर श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. को स्वीकार करते हैं। इस प्रकार आगरा संघ के सभी सदस्यों ने गुरु के रूप में आप श्री को स्वीकार किया।
  41. आप श्री ने संघ को त्याग पत्र देने के बाद सिर्फ 6 महिने में पाँच मुमुक्षु भाईयों को दीक्षा प्रदान की। बड़ी दीक्षा पाँचों संतों की साथ में हुयी। अतः उम्र के अनुसार रत्नाधिक से क्रम बनाया गया।
  42. आप श्री के जीवन में नौ के अंक का व रविवार का महत्त्व रहा हुआ है।
    1. 1. आपकी दीक्षा नौ महिने पहले निश्चित हो गयी थी।
    2. 2. संयमीय क्रान्ति का महाभियान आपश्री ने जिस दिन चलाया उसी प्रवचन में नौ मुमुक्षुओं ने दीक्षा हेतु लिखित प्रतिज्ञा पत्र दिये।
      3. दिल्ली में एक वर्ष में आप श्री ने | अष्टप्रहर के 2754 पौषध करवाये, उसमें भी 99- नौ-नौ का ही अंक | आया। इसी प्रकार सवा करोड़ का जाप या और कोई भी बड़ा काम हो, नौ का आप श्री के जीवन में अंक स्वतः ही आता है। इसी प्रकार जन्म, दीक्षा, त्याग पत्र व आचार्य पद सभी रविवार को ही हुये।
  43. आप श्री ने आचार्य श्री नानेश की दिल से सेवा की। अतः एक दिन आचार्य श्री नानेश ने फरमाया, “इतनी सेवा या तो मेरी माता श्रृंगारा जी ने बचपन में की थी या फिर अब मारासा ( श्री ज्ञानचन्द जी म.सा.) कर रहे हैं। आचार्य श्री नानेश ने आप श्री के लिये कहा, “यह जो बोलता है, वह मैं बोलता हूँ। यह जो कहता है, वह मैं कहता हूँ। इस (शिष्य) से अलग मैं नहीं। रह सकता। यह मेरा हृदय है, यह मेरी चक्षु है, यह मेरा सर्वेसर्वा है। इसे मैं सब अधिकार देता हूँ कि यह जो करेगा वह ठीक है। मेरा अंतिम श्वास इसके हाथों में निकलेगा।”
  44. आचार्य श्री नानेश को संथारा आप श्री ने ही करवाया।
  45. आज तक जो आविष्कार आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा नहीं किये गये हैं, लेकिन जो हो सकते हैं, ऐसी बीसियों तथ्यपूर्ण बातों का अनूठा चिंतेन प्रस्तुत कर आप श्री ने आधुनिक विज्ञान को नयी दिशा दी है।