Gyan Tirth

अरिहंत दूत पता. 23001 2021, णमोत्थुणं ज्ञान तीर्थ देवलोक के सभी 64 इन्द्र और असंख्य सम्यक्‌ दृष्टि देवी देवता णमोत्थुणं के पाठ से देवाधिदेव सिद्ध एवं अरिहंतों की स्तुति करते आए हैं। यही कारण है, इस पाठ का नाम शक्रस्तव भी है। शक्र याने इंद्र,अर्थात इंद्रों द्वारा की जाने वाली स्तुति। णमोत्थुणं का पाठ अतीत सुदूर भूत में भी यही था, वर्तमान में भी यही है, आगे सुदूर भविष्य में भी यही रहेगा | णमोत्थुणं ही एक ऐसा पाठ है, जिससे इंद्र देवी देवता, सभी प्रभु की स्तुति करते हैं। ऐसे पाठ से स्तुति किये जाने पर देवताओं का बल्कि इन्द्रों का आकर्षण भी उन पाठकर्ता की तरफ होना स्वाभाविक है। साफ है,हमें किसी भी देवी देवता, इंद्र को मनाने के लिए कोई अन्य पाठ करने की आवश्यकता नहीं है,केवल इसी एक ही पाठ से कोई भी देवता का झुकाव आपकी तरफ बढ़ता जाता है। अत: देवता की भक्ति न करके देवाधिदेव अरिहंतो की भक्ति ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ।अरिहंतों में तीर्थकर देव 34 अतिशय 35 वचनातिशय के धारी होते हैं। उनकी शरण में जाने वाले को भौतिक और अभौतिक दोनों लाभ प्राप्त होते हैं। तन-धन-राज्य, सुख शांति सभी की प्राप्ति होती है।

एक नहीं पचासों प्रसंग जैन शास्त्रों एवं जैन इतिहास में मिलते हैं। एसे अरिहंतों की उपासना, आपके अशुभ कर्मो का क्षय कर भाग्य रूपकमल की हर पंखुड़ी खिला देती है।

कर्मो के क्षय से आत्मा के सिद्ध स्वरूप को भीतर में प्रकटाने में तो सहायता मिलती ही है, इसी के साथ गौण रूप से जब तक दुनिया में हैं, तब तक तन की स्वस्थता, धन की प्राप्ति, प्रतिष्ठा का विस्तार सत्ता-समृद्धि सुविधा आदि हर इच्छा की पूर्ति भी होती जाएगी। अरिहंतों की शरण में जाने वालों की कोई इच्छा अधूरी नहीं रहती है।

किसी एक देवता की भक्ति करने से तो वो संबंधित देवता ही सहयोगी बन सकता है, जबकि उसका भी बनना जरूरी नहीं, लेकिन णमोत्थुणं के पाठ से तीर्थकरों की भक्ति करने से संसार के सभी देवी देवता सहयोगी बन जाते हैं। देवी देवता, किसी के भाग्य को नहीं बदल सकते, जबकि णमोत्थुणं के पाठ से की जाने वाली भक्ति इंसान के भाग्य को ही बदल देती है।

महान्‌ क्रियोद्धारक उत्कृष्ट संयमी आचार्य श्री हुक्‍्मीचंद जी महाराज साहब तो प्रतिदिन दो हजार बार णमोत्थुणं के पाठ से स्तुति किया करते थे। महान तपोधनी श्री अमर सिंह जी महाराज साहब प्रतिदिन 700 बार णमोत्थुणं पाठ से भक्ति करते थे ।

अतीत में बड़े-बड़े आचार्यो एवं चरित्रात्माओं द्वारा णमोत्थुणं पाठ से भक्ति की जाती रही है। परम पूज्य, युगद्रष्टा, प्रकांड विद्वान, वचन सिद्ध योगी, णमोत्थुणं सिद्ध साधक, वरनाण दंसण चरित्रधर आचार्य प्रवर श्री ज्ञानचंद्र जी म. सा. द्वारा णमोत्थुणं जाप को नवीन परिवेश में पूरे देश में प्रसारित किया गया है। जो उत्कृष्ट प्रतिभा के धारक, शुद्ध संयम साधक शास्त्र मर्मज्ञ, तर्क चक्रवर्ती हृदयग्राही प्रबचनकार,नव-नव विचार देकर जन जागरण करने में कुशल, युगद्रष्टा ही नही भविष्य द्रष्टा और युग निर्माता भी हैं।

उनके तप-तेज संयम एवं वक्‍तृत्व का परचम आज पूरे देश को आंदोलित कर रहा है। जिनकी शरण में जो आ जाता है, वो स्थायी रूप से उनका होने के साथ ही, सब कुछ पाता चल जाता है। णमोत्थुणं से हजारों लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। आत्म साधना से परमात्मा की प्राप्ति रूप लक्ष्य के साथ अकल्पित रूप से भौतिक इच्छाओं की पूर्ति भी हुई है। चाहे वो धन हो या रोगों से मुक्ति हो या फिर अन्य कोई भी समस्या हो ।

पूरे देश में हजारों लोगों से अनेक घटनाक्रम निरंतर सुनने एवं पढ़ने को मिल रहे हैं। आचार्य प्रवर एवं उनके साधु साध्वियां जी के माध्यम से तो यह पाठ समय समय पर कराया ही जा रहा है। परंतु इस पाठ के लिए ऐसा कोई महत्वपूर्ण स्थल हो, जहां पर जाकर इस पाठ को किया जा सके। इसके लिए “श्री अरिहंतमार्गी जेन महासंघ राष्ट्रीय द्वारा * णमोत्थुणं ज्ञान तीर्थ!” की संकल्पना की गई है। ताकि भक्तगण निर्धारित उस स्थान पर जाकर णमोत्थुणं पाठसे सिद्ध एवं अरिहंतों की स्तुति कर सके ।

एक बात और है कि इस पाठ से केवल तीर्थकरों की भक्ति ही नहीं होती बल्कि विश्व के सभी श्रेष्ठ महात्मा, परमात्मा सबकी भक्ति होती है। राम जी, हनुमान जी, पांडव आदि की भक्ति भी इसी पाठ से हो जाती है। क्योंकि इसमें किसी भगवान का नाम नहीं है।

एक ही निर्धारित स्थल पर बैठकर णमोत्थुणं पाठ करने से उस क्षेत्र में वातावरण की पवित्रता तो हो ही जाती है साथ ही हर दिन, भक्तों के द्वारा की जाने वाली स्तुति से णमोत्थुणं की ध्वनि तरंगों से वो क्षेत्र घनीभूत एवं अत्यंत प्रभावी बन जाता है। ऐसे क्षेत्र में जाकर भक्ति करने से भक्तों को, कर्मक्षय एवं अतिशय पुण्य प्राप्ति के साथ सभी रोग एवं सभी समस्याओं का समाधान भी सहज और शीघ्र हो जाता है। आजकल सेंसर के माध्यम से इंसान को, बड़े-बड़े संकटों से बचाया जा रहा है। तरंगों के चमत्कारिक रूप को, सर्वसाधारण जन भोग्य बनते देखा जा रहा है। इसी प्रकार से णमोत्थुणं ज्ञान तीर्थ पर जाकर की जाने वाली भक्ति से आपके तन को स्वस्थ एवं धन को बढ़ाने के साथ ही सुरक्षा के बहुत बड़े सेंसर लग जाने हैं। यह एक ऐसा तीर्थ है।

जहाँ साकार की नहीं निराकार की उपासना होनी है। जहां तन की नहीं गुण की भक्ति होनी है । जहां व्यक्ति की नहीं व्यक्तित्व की पूजा होनी है।

जहाँ जाकर ईशान कोण में बैठकर भक्ति करने से सीधा अरिहंतो की तरंगों से संपर्क होना है। यह जैन धर्म के सब तीर्थों से विलक्षण तीर्थ होगा, जो अरिहंतों की एवं महात्माओं की तरंगों का सबसे बड़ा सेंसर शक्ति, भक्ति, समृद्धि देने वाला होगा ।

“णामोत्थुणं से पाया ही पाया है अब देने का समय आ गया।
“णामोत्थुणं ज्ञान तीर्थ में खुल्ले दिल से दान दीजिये

जैन शास्त्रों में किसी भी कार्य को सफल करने में द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अनुकूलता होना आवश्यक बतलाया है। इसलिए समायिक को भी स्थानक में करने पर जोर दिया जाता है। इसी प्रकार क्षेत्र की शुद्धि, भावों में उत्कर्षता लाने के साथ ही निराकार की उपासना को आत्म प्रतिष्ठित करने एवं जन जन को सम्मार्ग पर लाने तथा उनके हर तरह के समाधान के लिए प्रस्तावित हैं:-

“* णामोत्थुणं ज्ञान तीर्थ ”

जो आपके उदारता पूर्ण सहयोग से साकार रूप लेगा। यह सुनिश्चित है धन-संपत्ति तो हमारी तिजोरी में रहे तब भी यहीं रहेगी और दान में दे दी जाए तब भी यहीं रहेगी। लेकिन दान में दी गई संपत्ति सैकड़ों वर्षो तक इस भव में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ाएगी और भव भव में आपकी पुण्यवानी खिलाएगी।