16 जनवरी हिरो होम लुधियाना जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म.सा .

16 जनवरी हिरो होम लुधियाना
जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म.सा .
तुम्हारी कथा भी पापहारी है
आस्तां तव स्तवनमस्त- समस्त दोषं,
त्वत्संकथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति ।
दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव,
पद्माकरेषु जलजानि विकासभाजि ॥ ९ ॥
तव- तुम्हारा
अस्तसमस्तदोषं- निर्दोष, समस्त दोषों से रहित
स्तवनम्- स्तवन
दूरे आस्ताम्- दूर रहे
त्वत्संकथा- आपकी कथा
अपि- भी
जगताम्- समस्त संसारी जीवों के
दुरितानि- पापों को, अपराधों को
हन्ति- हनन करती है, नष्ट करती है
सहस्रकिरणः- सूर्य
दूरे- दूर (है फिर भी उसकी )
प्रभा एव- कान्ति ही
पद्माकरेषु- सरोवरों में
जलजानि- कमलों को
विकासभाज्जि- विकसित, प्रफुल्लित
कुरुते- कर देती है।
शकेन्द्र ने शक्रस्तव के माध्यम से विश्व के सर्वोत्कृष्ठ अरिहंत व सिद्ध की स्तुति की है। जो कि आज णमोत्थुणं के नाम से प्रसिद्ध है। परंतु इसका मूल नाम तो शक्रस्तव ही है। शक्रस्तव का मतलब- शक्रेन्द्र द्वारा स्तुति। 64 इन्द्र सभी एका एकारवतारी, भव्य होते हैं। इसका कारण क्या?
जबकि उस भव में तो वे सामायिक, नवकारसी, व्रत आदि नहीं कर सकते। फिर ऐसी शीघ्र प्रक्रिया क्या है? इसका कारण है अरिहंत और सिद्धों पर अगाध आस्था, अपूर्व श्रद्धा भक्ति के साथ की जाने वाली भक्ति। जब भी उन्हें मालुम पड़ता है- किसी को केवलज्ञान हो गया तो वे आसन पर बैठें नहीं रहते तुरंत नीचे उतरते हैं। और 7-8 कदम आगे जाकर स्तुति, णमोत्थुणं से शुद्ध करते हैं। प्रश्न होगा कि उन्हें दिख ही नहीं रहें हैं तो फिर उनके सामने 7-8 कदम क्यों जाते है? पहली बात अरिहंत तो देखते ही है तथा इन्द्र भी अपने अवधि ज्ञान से देखते ही है। जैसे अपने आपने सामने बैठे व्यक्ति को देखते हैं, जैसे ही वे भी स्पष्ट देखते हैं। जैसे आप कमरे में बैठे हुए T.V. में अन्यदेशों की चीजों को भी देख लेते है। बाहरी तरंगों को केच करके भी आकार सहित टी. की में दिखाई देता है। उसी प्रकार अवधिज्ञान भी एक यंत्र है। वह जितने भी रुपी पदार्थ है, उनकी तरंगों को केच करता है और मानव के स्मृति पटल पर उतार देता है याने उनकी अंतरंग की टी.वी. (TV) की स्कीन पर दिखना शुरू हो जाता है। ज्योंहि उन्हें तीर्थंकरों की कोई विशेष बात मालूम हुई और तुरंत स्तुति शुरू कर देते हैं। प्रश्न होता है-
स्तुति करने से क्या वे अरिहंत – सिद्ध खुश हो जाते है? स्तुति करने मात्र से वे खुश हो जावे और नहीं करने वालों पर नाराज हो जावे तो अरिहंत कैसे? यद्यपि वे देते कुछ नहीं। फिर भी वे ऐसी वस्तु देते हैं जो अन्य नहीं दे सकते। वह है उनके भीतर से निकलने वाली तरंगे। इंद्र स्तुति के माध्यम से से उन तरंगों को केच करते है। पूरे विश्व में रूपी द्रव्य की अनेक तरंगे चल रही है। परंतु इन्द्र का ध्यान प्रभु की तरफ ही रहता है और श्रद्धापूर्वक उनकी भक्ति करता है। यानि अरिहंत की तरंगों को इन्द्र केच कर रहा है। और उसमें विशिष्ट प्रकार का परिवर्तन आता है।
आजकल टी. वी. में भी बहुत चेनल है। परंतु बटन आन करेंगे तभी तो चालू‌ होगा। वैसे अरिहंत सिद्ध चेनल के तो बहुत (तरंगे) चल रहे है।
पर अपनी भक्ति उन्हें केच करे तब ना। इसी बात को मानतुंगाचार्य ने समझाया- आस्तां तव स्तवन मस्त दोषं——।
आपकी स्तुति अस्तकर देती है समस्त दोषों को। भक्त के सारे दोष अस्त हो जाते हैं। वह स्तुति तो दूर- त्वत् संकथाऽपि तुम्हारी कथा भी कोई करले व तुम्हारा नाम भी कोई ले लेवे, तो भी उनके दु:ख, उनके कष्ट दूर हो जाते हैं। तो तुम्हारी स्तुति से तो सारे दोष नष्ट हो जाते हैं। कोई भी दोष उनमें नहीं रहता। भक्त भक्तामर या पुच्छिस्सुणं या फिर सिर्फ शक्रस्तव से स्तुति करता है। वह तप-जप-अनुष्ठान कुछ भी नहीं करता (नवकारसी,- पोरसी आदि कुछ भी तप नहीं करता) सिर्फ उसकी स्तुति का फल यह, कि उसके सारे के सारे दोष नष्ट करके वह तुम्हारे समान बन जायेगा। तो भगवान, मै भी आपकी स्तुति करके अपने दोषों को नष्ट कर सकता हूं। आप भी स्तुति करते हैं परंतु किस लिए? अपनी समस्या दूर करने के लिए। आज लोग कहते हैं- इस साल हमेशा भक्तामर का पाठ पढ़ूगा, पर मेरा बंगला अच्छा बन जाना चाहिए। मेरे गाड़ी आ जानी चाहिए यह मांग लिया। पर सर्वज्ञ की नजर है कि इसे मोटा बंगला मिलेगा तो इसके डकैती पड़ेगी। कहीं बेटा खत्म हो जायेगा। ये बातें आपको मालूम नहीं, परंतु भगवान अच्छी तरह से जानते हैं।
कोई इंडस्ट्री लगाने की मांग की। पर आपका मैनेजर पावर – फूल (Power full) कि वह आपका ही मर्डर करके फैक्ट्री का मालिक बन बैठे। तो ऐसी मांग पूरी होने से क्या मतलब। अतः फैक्ट्री – बंगला यदि लाभदायक हो तो मिले या न मिले यह तो वे सर्वज्ञ पुरुष ही जाने। अत: किसी भी प्रकार की चाह नहीं रखता। सिर्फ भक्ति। जो वीतरागता तक पहुंचाने का सामर्थ्य रखती है, यानि भगवान की भक्ति में इतना सामर्थ्य है, कि वह अगले भव को पार करते ही आपके समान बन जायेगा। हजारों किरणों वाला सूर्य दूर से ही अपनी प्रभा से ही पद्मसरोवर के जल में पैदा होने वाले कमल को खिला देता है, वह विकास की अवस्था को पा लेता है। उसे खिलाने, विकसित करने के लिए क्या सूर्य को नीचे आने की जरूरत है? नहीं। पहली किरण के आने मात्र से ही खिलना शुरू‌ हो जाता है। है आप उसे ऐसे ही खोलना शुरू करो, तो क्या वह खिल जाएगा नहीं, मर्करी लाईटों का कितना ही प्रकाश कर दो, पर नहीं खिलता । जबर्दस्ती खिलाये तो टूट जायेगा।
वैसे ही अपना स्वयं का उपादान ठीक होना चाहिए। व्यक्ति धन, दौलत प्राप्त‌ करने के पीछे भागा भागी कर रहे हैं, पर भीतर में उनका योग नहीं है, तो वह भागा भागी बेकार है। जैसे सूर्य की किरण भीतर के योग को ठीक करती है, ऊष्मा देती है, ठीक वैसे ही प्रभु की भक्ति भीतर को ठीक करती है। भीतर का योग यदि ठीक नहीं है तो बहुत एक्सपीरियन्स होल्डर से भी इण्डस्ट्री बराबर नहीं चल सकती, क्योंकि योग ठीक नहीं। आज व्यक्ति बाहरी लाईट के प्रकाश से पंखुडि़यो को खिलाना चाहता है। बाहर से गाड़ी को धक्का मार कर चला रहे हैं। पर उससे होना क्या है? परमात्मा की स्तुति सम्पूर्ण दोषों को नष्ट करने वाली है। परंतु आज आदमी के पास समय नहीं है। अतः हर कार्य को शोर्ट में करना चाहता है। आज नवकार मंत्र को भी लोग शोर्ट (short) में बोलना चाहते हैं। और ऐसे लोगों को साधु भी ऐसे ऐसे ही मिल जाते हैं जो शोर्ट बताते हैं- नवकार मंत्र की जगह असिआउसा नमः। इसका मतलब क्या? अरे! परमात्मा की स्तुति के लिए समय नहीं है। विशेष लाभ की प्राप्ति हेतु तो नवकार मंत्र को पूरा पढ़ना पड़ेगा। सर्वज्ञ बड़े या आज के साधु बडे? पहली क्लॉस का व्यक्ति कहे कि इसमे अमुक अमुक गल्तियां हैं, तो यह नादानी है, हम मानते नहीं है। वैसे ही लोग जानते कुछ नहीं, और अरिहंतों के द्वारा बताये गये मंत्र को भी शोर्ट करने में लगे है। और आप भी उसके पीछे लगे हैं। शोर्ट शोर्ट में भी शोर्ट। आपकी खाने की थाली में भी यदि एक कवल रोटी व एक (पीस) सब्जी का रख दिया जाए तो क्या आपका पेट भर जाएगा। वैसे ही एक-2 अक्षर के उच्चारण से क्या फल मिलना है? भगवान की स्तुति तो सही ढंग से करो। उनके बारे में चर्चा कीजिए। किसी के सामने ऋषभ नाथ, शांतिनाथ, महावीर आदि की कहानियां सुनाइये, अपने बच्चों को भी उन महापुरुषों के जीवन की घटनाएं सुनाइये। स्वत् संकथापि जग‌तां दुरितानि हन्ति
परंतु हम कैसी कथा करते हैं? उस खेल में कौन-कौन सी टीम आई, कौन जीता? कौन हारा? ऐसी कथा कर लेंगे। किसके कितने बच्चे है? कितने बच्चों की शादी हुई है? राजकीय कथा भी कर लेंगे, कौन राष्ट्रपति? कौन प्रधानमंत्री है? कैसा व्यक्ति है इत्यादि । परन्तु हम तीर्थंकर की कथा नहीं करते। मानतुंगाचार्य कह रहे है- त्वत्संकथापि– पहले के जमाने के लोग दादा, परदादा आदि 24 तीर्थकरों की कहानियाँ बच्चों को सुनाया करते थे। जन्मघूंटी भी तीर्थकरों स्तुति के साथ पिलाते थे। बुजुर्ग लोग स्तुति के संस्कार के साथ ही घूंटी पिलाते थे। यही कारण है कि आज उनका सम्मान किया जाता है। आदर की दृष्टि से देखा जाता है। परंतु आज की स्थिति छोटा सा आपका पोता भी आपके सामने बोलने को तैयार हो जाता है। बड़े बड़े बेटे नहीं बोलते, वह बात छोटे-2 बच्चे बोल देते हैं। यदि अंदर स्तुति की घूंटी, प्रभु के नाम की घूंटी, पिलाई हुई है। ऐसे संस्कार दिये हुए है, तो हिंसा, झूठ, चोरी आदि गलत काम करते समय उसके पैर दब जायेंगे। वह स्तुति का रिमोट व्यक्ति को गलत कार्य करने से रोक देता है। आजकल तो झूठ, चोरी, जारी करते हुए भी अपने आपकी गलती नहीं समझते। व्यक्ति अपने आपको होशियार समझता है। अतः स्तुति जरूरी है ताकि बाहर की दूषित तरंगे भीतर में घुसे।
आजकल पोलियों टीका का भारी मात्रा में प्रचार है। चाहे बीमारी हो या न हो परंतु एडवांस में लगा दिये जाते हैं। फिजिकली इलाज हेतु आप पूरी तरह होशियार है, पर मेंटली इलाज हेतु आप बच्चों के लिए क्या कर रहे हैं? इसका मेन्टल दूषित न हो जाए, इसके लिए डॉक्टर के पास कोई इलाज नहीं। इसका इलाज है तो-भगवान की स्तुति। किसी भी धर्म में लीजिए यदि कोई कथा सुनाते है। अच्छे व्यक्तियों के सद्गुण सुनाते है। पर आजकल (टी.वी) आदि पर कैसी-2 Story आती है।
आजकल लोग अपने बच्चों को डान्सर बनाने के लिए डान्स सीखने भेंज रहे हैं। और मां-बाप सामने देखकर खुश होते हैं। पुराने जमाने में किसको नचाते ? नगरवधु को। और वह भी सरीफ घराने के लोग नहीं देखते। पर आज अपनी ही बहु बेटी को तैयार करके रोड पर नचाते है। उनकी दृष्टि ही बदल गयी। उनकी दृष्टि, गलत मान ही नहीं रही है। इसी लिए अधिकतर एक्टर एक्टरनियो की कथा होती रहती है। विलासिता चारों ओर फैल रही है, इससे दुनिया डूबनी ही डूबनी है।
आजकल वैज्ञानिक भी संस्कार बदलने का कार्य कर रहे है। स्कूल में भी गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लोकमान्य तितक आदि के फोटो लगाते हैं। परन्तु उन बच्चों के स्टडी रुम (study room) में कैसे फोटो लगे रहते हैं। हीरो हीरोइन के । क्योंकि उनके संस्कार ही ऐसे है। कोई बड़ा आदमी आपके पास बैठा है और अच्छी कथा सुनाते हैं, तो आपके संस्कार आपके अंदर आये बिना नहीं रहते। सूर्य की ऊष्मा भी कमल की पंखुड़ियों को खिला देती है। प्रभु भक्ति की ऊष्मा यदि हमारे भीतर आ जाए, तो वह हमारे जीवन की पंखुड़ियों को खिला देते हैं। अतः फालतू समय मिलते ही तीर्थंकर की, धर्म की कथा करें।
जालंधर में मुन्नीलाल जी जैन श्रावक है। आजकल लोग धन्धे का त्याग करते है। परन्तु 8 घण्टे के धन्धे का त्याग करके क्या करेंगे? कभी पत्नी से लडेगा, कभी पड़ौसी से लड़ेगा, कभी बेटे से लड़ेगा। या कभी किसी की, कभी किसी की शादी करवायेंगे। ये आरम्भ-समारम्भ और बढ़ेगा। व्यापार करते वक्त सिर्फ एक तरफ पाप करता था परंतु अब चारों तरफ पाप बढ़ा लिया। अब धन्धे से भी ज्यादा पाप बढ़ गया। किन्तु वे मुन्नीलाल जी जैन सुबह उठते ही बाहर जाते और कहीं धर्मकथा हो तो प्रवचन सुनते। फिर स्वाध्याय करते । तथा दोपहर में खेलते हुए दोस्तों के बीच जाते, तो वे भी कहते- रुको, अब थोड़ी देर इन्हें सुनेंगे दुसरी तरफ एक ऐसे आदमी को भी देखा कि उसकी जेब में 20-30 लड़के-लड़कियों के फोटो हर समय रहते हैं। वह सभी को बताता रहता है और जोड़े फिट करवाता है। और किसी के पीछे 10-20-50 हजार तक लगाना पड़े तो भी लगा देता है। ये है पाप के कार्य । उसे पूछा, ऐसा क्यों करते हैं? तो बताया – यह तो मेरी होबी (hobby) है। यह कैसा -पाप का भी शौख। अगर हम प्रभु की स्तुति सही ढंग से करेंगे तो तरंगे हमारे साथ जुड़ेगी और हमारा जीवन ऊपर उठना शुरू हो जायेगा।
अतः द्रव्य क्षेत्र काल भाव की शुद्धि के साथ प्रभु की कथा भी पावनकारी, पापहारी है।
धर्म प्रभावना
16 जनवरी हीरो होम लुधियाना से 11 किलोमीटर का विहार कर आचार्य प्रवर आदि संतगण नररत्न श्री प्रवीण जी जैन ऋषि नगर बंगला न. F -192 पर पधार गये हैं। सुंदर नगर जैन सभा के प्रधान मनधिर जी, अनिल जी, सुमत जी, महेश जी,संजय जी आदि का शिष्टमंडल आचार्य प्रवर की सेवा में सुंदरनगर पधारने के विनती लेकर पहुंचा । 17 जनवरी को णमोत्थुणं जाप और प्रवचन यही होने की संभावना है।
जालंधर गौशाला
गाय हिंदू संस्कृति का सर्वोत्तम प्रतीक है ।
गाय की रक्षा एक ढंग से विश्व की रक्षा है।
इसलिए जितनी अधिक गाय बचेंगे पशु बचेंगे उतना ही विश्व का कल्याण है ।
इसलिए आप का दान विश्वकल्याण से जुड़ा है ।
प्राप्त दानराशि-अरुण जी अग्रवाल जालंधर-11000
श्री हंसराज जयचंद लाल जी झाबक मुंबई-7,500 प्राप्त हुए ।
बहुत बहुत धन्यवाद ।
श्री अरिहंतमार्गी जैनमहासंघ सदा जयवंत हो।