25 दिसंबर रविवार
बचने का तरीका
जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा.
अप्पाखलु सययं रक्खियव्वो,
सव्विंदिएहिं सुसमाहिएहिं ।
अरक्खिओ जाइपहं उवेइ,
सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ।।
निश्चय ही अपनी आत्मा की रक्षा करनी चाहिये ।
सभी इंद्रियों पर नियंत्रण करके और अपन को सुसमाधि में ला करके जो आत्मा की रक्षा नहीं करता वो एकेन्द्रीय से पंचेन्द्रिय तक में भटकता रहता है ।
जो आत्मा की रक्षा करता है वो सब दुखों से मुक्त होता है ।
गिरती आत्मा कों ऊपर उठाने के लिए यह दिव्य संदेश सभी के लिए उपादेय है ।
प्रभु फरमाते हैं, आत्मा की रक्षा करो । लेकिन हम रक्षा किसकी कर रहे हैं आत्मा की या शरीर की।
बहुत तेज सर्दी पड़ रही है, शरीर को ढक लिया ऊनी कपड़े पहन लिए । गरम-गरम खाना खा लिया पर आत्मा की तरफ ध्यान नहीं दिया । उसकी रक्षा नहीं की तो सॉक्स पहनकर चलें सॉक्स कहीं अटका हड्डी तुड़वा बैठे । गरम-गरम पकोड़े ज्यादा खा लिया पेट खराब हो गया ,सर्दी से तन को ढकने के लिए रजाई पर रजाई ओढ़ी तो आक्सीजन में कमी आ गई ।
कमरा हिटिंग किया तो शॉर्ट सर्किट हो गया ।
अत: शरीर की रक्षा करने से पहले आत्मा की रक्षा करनी जरूरी है ।
साधु के लिए कहा गया कि शीत परिषह सहन करों ।
यह भी तपस्या है, मन को मजबूत रखकर अनावृत- खुल्ले बदन कायोत्सर्ग करो ।
शरीर अलग है आत्मा अलग है ।
यह दिमाग में नहीं दिल में बिठाओं ।
साधना की कसौटी पर आत्मा को कसो ।
यही स्थिति श्रावकों की भी है।
सर्दी पड रही है । स्वयं एयरटाइट कमरे को भी गर्म करके सो रहे हैं।
ध्यान लगाओ कि कितने अभावग्रस्त लोग ठंड से ठिठुरते रात बिता रहे हैं ।
कौन लोग, सर्दी में भी बासी खाना खाने के लिए विवश हो रहे हैं ।
उनका भी ध्यान लगाइये ।
अपने शरीर के बजाय,दूसरों के शरीर का ध्यान रखना धर्म है।
सवेरे उठो,कुछ भी खाने पीने से पहले सामायिक कर लो, नवकारसी तो रोज ही करना, कभी पोरसी भी कर लो ।
अपनी आत्मा की रक्षा, पुण्य, संवर या निर्जरा से होगी ।
अपनी इंद्रियाओं को नियंत्रण में रखो । साधु के लिए कहा गया अगर कपड़े कम है, सर्दी अधिक है तो बैठकर समाधि लो या खड़े होकर कायोत्सर्ग करो ।
अपनी इंद्रियाओं पर कंट्रोल करो।
प्रवचन देते हुए सामने एक भाई बैठा था जिसका नाम प्रदीप था।
जॉब करते हैं आचार्य श्री जी उन्हें संबोधित करते हुए बोले । आप सर्दी में जॉब करके घर आए ।
पत्नी घर पर नहीं है,मार्केटिंग करने गई है ।
इस सर्दी में आपको क्या लगेगा।
गुस्सा आएगा आप क्रोध में बोल सकते हो दिन भर काम करके आया हुं तो पत्नी घर पर नहीं ।
एक कॉफी भी कोई बनाकर नहीं दे सकता । यह बात अगर आप अपनी पत्नी को सुनाओं तो पत्नी भी कह सकती है कि दिन भर घर का काम करती हूं ।
तीनों टाइम खाना बनाती हूं । घर की सफाई करती हूं, कपड़ा धोना, बर्तन मांजना क्या काम नहीं है मेरा ।
बस एक कप कॉफी कि लेट हो गई तो घर, आसमान पर चढ़ा लिया ।
बस, पति पत्नी में तू तू मैं मैं हो गई ।
इसी तरह बात बढ़ते बढ़ते तलाक तक पहुंच जाती है ।
ऐसी छोटी-छोटी बातों पर संयम रखने की जरूरत है ।
अगर आप ऑफिस से घर गए गए हैं पत्नी से पूछा कहां हो, वह कहती है मार्केटिंग करके आ रही हूं तो आप बोलिए- कोई बात नहीं कोई बात नहीं ।
और अपने खड़े होकर खुद ने दो कप कॉफी बना लिया और पत्नी के आने पर टेबल पर कॉफी दो कपों में तैयार ।
चीयर्स के साथ पीना शुरू किया तो सोचो पत्नी को कितना सुकून मिलेगा ।
वह दौड़ दौड़ कर काम करेगी।
पति-पत्नी का विवाद हो या मां-बाप के साथ बात हो ।
शब्दों पर कंट्रोल, भावातिरेकता पर नियंत्रण की जरूरत है ।
जिसने आत्मा की रक्षा करना सीख लिया, उसका तन मन परिवार तो सुरक्षित हो ही जाएगा।
आत्मा के प्राण भूत, पॉजिटिव तरंगे उस व्यक्ति को बचाने के लिए सेंसर का काम करेंगी।
जिस प्रकार बिना ड्राइवर की गाड़ी, सुरक्षित चलती है ।
क्योंकि उसमें चारों तरफ ऐसे जबरदस्त सेंसर लगे रहते हैं कि किसी के साथ एक्सीडेंट होना तो दूर उसके नजदीक आने के साथ ही सेंसर गाड़ी को सुरक्षित मोड़ देते हैं ।
अगर हमें बचना है तो समाधि एवं इंद्रिय नियंत्रण करके अपने प्राणों के सेंसर बनाने होंगे ।
जो व्यक्ति अपने ही स्वार्थ में या असंयम में डूबा रहता है, काम, क्रोध, विषय,वासना में लगा रहता है ।
वो एकेन्द्रीय, बेन्द्रिय आदि जाति-पथ योनियों में भटकता फिरता है ।
लेकिन जो अहिंसा-दया का भाव रखता है जीवों को बचाता है गाय हो या बकरे हो उनको बचाने में अपना तन मन धन लगाता है
वो एक ढंग से उनको नहीं, अपने आपको बचाता है, जो आत्मा की रक्षा करता है, वो सभी दुखों से मुक्त हो जाता है ।
जैसा कि कहा है-
सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चई
जो जीवों की रक्षा करता है वो सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।
एक गुरु शिष्य की घटना आती है की-साला बहनोई शादी के तुरंत बाद एक गुरु जी के दर्शन करने के लिए पहुंचे तो साले जी ने बड़े गुरु जी से मजाक करते हुए कहा कि मेरे बहनोई जी तो दीक्षा लेना चाहते हैं बड़े महाराज ने ध्यान नहीं दिया तो उसने दूसरी बार भी यही बात कही कि मेरे बहनोई जी दीक्षा लेना चाहते हैं तब भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया तो उसने बार बार यह कह दी तब गुरु जी ने बहनोई जी को पकड़कर और बाल का लोच कर दिया और महाराज बना दिया ।
बहनोई जी खुद बदल गए कि मेरे लिए गोल्डन चांस है आत्मा को तारने का कपड़े बदल के महाराज बन गए । साले जी को लगा यह तो अनर्थ हो गया । वह घर भागा अपने माता-पिता को कहने के लिए । इधर शिष्य ने गुरुजी से निवेदन किया कि अगर यहां रहेंगे तो खतरा बढ़ेगा ।
मेरे ससुराल वाले आएंगे वह तंग करेंगे ।
इसलिए यहां से विहार कर दें ।
गुरु जी बोले मेरे से चला नहीं जाता तो शिष्य ने अपने कंधे पर गुरु जी को उठाकर निश्चित दिशा की ओर विहार कर दिया ।
शाम का समय था अंधेरा बढ़ने लगा तो पैर उल्टे सुल्टे पडने से गुरु जी को झटके लगने लगे तो गुस्से में आकर के चिल्लाने लगे तो शिष्य समभाव और संयम में रहकर बोला मेरे कारण से आपको तकलीफ हो रही है मैं आपसे माफी मांगता हूं । गुरु जी तो शांत बैठे थे और आज गुरु जी को तकलीफ देना पड़ रहा है खड्डे में गिरने से बहुत बड़ा झटका लगा तो गुरुजी गिरते-गिरते बचे गुरू जी को इतना गुस्सा आया उन्होंने डंडे से पीट दिया तब भी शिष्य ने अपनी गलती मानी ।
इंद्रिय संयम और समाधि की अवस्था में बना रहा तो उसे चलते चलते केवल ज्ञान हो गया ।
यह बात जब गुरु जी को मालूम चली तो गुरु जी ने भी तुरंत नीचे उतर कर अपने चेले से माफी मांगी ।
इसीलिए भगवान महावीर स्वामी ने कहा है कि अपनी आत्मा की रक्षा इंद्रिय संयम और समाधि की अवस्था में रहकर के की जा सकती है ।
इसलिए छोटा आदमी कभी भी बड़े पद पर आ जाए तो उसको छोटा समझ कर अपमान मत करो । आज वह जिस पद पर है उसी अनुसार सम्मान किया जाए अन्यथा स्वयं के लिए हानिकारक हो सकता है ।
कई बार सामान्य आदमी पार्षद विधायक, एमपी,मिनिस्टर कुछ भी बन सकता है ।
उसका उसी रूप में सम्मान करने वाला व्यक्ति लाभ में रहता है ।
और जो व्यक्ति उसे छोटा समझ कर अपमान करें तो कभी झटका खा सकता है ।
यह प्रेरणा भी इस उदाहरण से मिलती है ।
धर्म प्रभावना
25 दिसंबर रविवार को दिन भर भक्तों का आवागमन बना रहा ।
जालंधर से गुरुभक्त प्रबुद्धजीवि श्री राकेश जी जैन,अजय जी ( गोल्डी जी ) संत कुमार जी, संजय जी, अनीश जी आदि।
महिलारत्न पंकज जी, चेरी जी, चंदा जी,ज्योति जी आदि दिन भर लोगों का जालंधर और कपूरथला से आवागमन बना रहा ।
आचार्य प्रवर ने यथासंभव सभी को समय देकर धर्म चर्चा की ।
गौशाला में दान देने के लिए महासंघ का अकाउंट नंबर-
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