24 दिसंबर कपुरथला
सद्धर्म तत्व कथनैक
जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा.
स्वर्गापवर्ग – गम – मार्ग – विमार्गणेष्ट:,
सद्धर्म- तत्त्व – कथनैक – पटुस्-त्रिलोक्या:।
दिव्य-ध्वनि-र्भवति ते विशदार्थ-सर्व-
भाषास्वभाव-परिणाम-गुणै: प्रयोज्य:
हे प्रभु, आपकी दिव्य देशना, विशद अर्थ वाली है, समवसरण में जो जैसा भी प्राणी बैठा हो, चाहे पशु हो पक्षी हो, इंसान हो या देवता हो, चाहे किसी भी देश का कैसी भी भाषा का जानकार आदमी बैठा हो उन सबको उनकी भाषा में आप की दिव्य वाणी रूपांतरित हो समझा देती है ।
उन सभी को स्वर्ग,अपवर्ग- मोक्ष की तरफ जाने वाले मार्ग को विमार्गण खोज कराने में समर्थ है।
क्योंकि तीन लोक में सच्चे धर्म का कथन करने में अद्वितीय पटु है ।
नरक, स्वर्ग, अपवर्ग ये तीन तथ्य ऐसे हैं कि जो दिखलाई नहीं देते।
पर जो हमारी आंखों से दिखाई न दे वो है ही नहीं । ऐसा नहीं होता ।
हमने दुनिया के लाखों विचित्र दृश्य नहीं देखे हैं,लेकिन जो दूसरा देख लेता है वो हमें बताता है तो हम सहज मान लेते हैं ।
उस व्यक्ति से तो परमात्मा- अनंत गुणा ज्ञानी है । यदि उनकी वाणी पर हमें भरोसा न हो तो हम उनकी भक्ति करके भी कुछ नहीं पा सकते । जब हम क्रूर काम करेंगे तो नर्क में जाना ही पड़ेगा और जब हम किसी के प्रति अच्छा काम करेंगे दान शील,तप भावना अपनाएंगे तो स्वर्ग है और जब समाधि के चरम भाव द्वारा, इन दोनों भावों से ऊपर उठ जाएंगे तो मोक्ष हो जानी है ।
स्वर्ग और नरक, दोनों भौतिक सुख दुख रूप हैं ।
जो अधोलोक, उर्ध्वलोक में कहां है ।
वहां की क्या स्थिति है इन सबका जैनागमों में विस्तृत वर्णन है ।
उन सबका यहां विस्तृत कथन नहीं किया जा रहा है ।
अपवर्ग याने मोक्ष । जहां इंद्रियों से जुड़ा वैषयिक सुख न हो ।
जो अतीन्द्रिय बल्कि अमूर्त, अचल शाश्वत,निराबाध अनंत सुख देने वाला हो वो मोक्ष है ।
वो कैसा सुख है, उसका छद्मस्थ व्यक्ति का कल्पना करना भी असंभव है ।
कुएं का मेंढक, समुद्र का रूप कैसे जान सकता है ।
किसी भी उदाहरण से उसके दिमाग में समुद्र का रूप नहीं बैठाया जा सकता ।
अनंत अनंत जन्मों से अनंत काल से हमारी आत्मा कर्मों से आबद्ध होने के कारण, अपने मौलिक स्वरूप को नहीं जान पा रही है।
यह अनभिज्ञता ही उसे संसार में भटका रही है ।
जैन धर्म हो या अन्य कोई धर्म, सब में ध्यान और समाधि का किसी न किसी रूप में उल्लेख अवश्य मिलता है ।
जैन धर्म में तो ध्यान का खूब उल्लेख है ही ।
सारे तीर्थंकर,अधिकतर ध्यान याने कायोत्सर्ग करते रहे हैं ।
कायोत्सर्ग का मतलब ही है, शरीर में रहते हुए भी काया से संबंध हटा लेना ।
जैसे क्लोरोफॉर्म सुंघने के बाद शरीर में कोई भी छेदन भेदन करो वो संबंधित व्यक्ति को पता नहीं चलता ।
वैसे ही जो महायोगी, ध्यान के परम प्रकर्स में चले जाने के बाद शरीर की व्याधियों से ऊपर उठ जाते हैं, तभी तीर्थंकर जो कभी नींद नहीं लेते तो भी हर वक्त सद्यजात खिलते फूल की तरह होते हैं ।
वे शरीर और आत्मा के भेद विज्ञान को दिल से समझते ही नहीं है बल्कि क्रियात्मक जीवन में भी उतार लेते हैं । यह एक ढंग से सशरीर अवस्था में अपवर्ग मोक्ष की झलक है ।
हे प्रभों ! आपकी दिव्य वाणी सच्चा धर्म समझने में तो समर्थ है है ही बल्कि सभी को अपनी अपनी भाषा में भी दिव्य उपदेश समझा देती है ।
यही कारण है कि तीर्थंकरों का उपदेश सुनने इंसान ही नहीं पशु-पक्षी भी आते हैं ।
और कई कई तो श्रावक भी बन जाते हैं ।
तीर्थंकरों में अहिंसा, सत्य दया के भाव बाहर से किसी के उपदेश से अंदर में नहीं आए हैं । बल्कि स्वयं की साधना से अंदर से प्रस्फुरित हुए हैं । जैसे बाहरी दृष्टि से यह कहा जाता है कि यह घर का मकान है, यह किराए का मकान है तो तीर्थंकरों के गुण जो है, वो घर के मकान की तरह स्वयं के स्वभाव विशेष से जुड़े हैं ।
जिस प्रकार भयंकर गर्मी से तपते इंसान को अगर ए.सी.मिल जाए तो जो शीतलता महसूस होती है उससे तो कल्पनातीत गुणा अधिक शांति, एक संसारी प्राणी को तीर्थंकरों के दर्शन से प्राप्त होती है ।
लेकिन जब वो सामने न हो तो उनकी भक्ति में डूबकर भी आनंद पाया जा सकता है ।
इंद्रियों के विषयों को भी तेज बना लिया जाए तो वो दूर-दूर के पदार्थों को भी ग्रहण करने में समर्थ हो जाती है ।
इसी तरह भक्ति प्रकर्षता, तीर्थंकरों के लोगहिआणं, नेटवर्क से जुड़कर परम शांति को पा सकती है ।
आचार्य मानतुंग ने यहीं कुछ भव्यात्माओं को समझाया है।
उपदेश दिया तो वे सब के सब बदल गए ।
धर्म प्रभावना
24 दिसंबर को चल रहे तीव्र शीतलहर के वातावरण के बीच आचार्य प्रवर आदि संतों का करीबी 11 किलोमीटर का विहार होकर कपूरथला जैन स्थानक में पदार्पण हुआ । स्थानीय लोग सामने उपस्थित हुए ।
एस.एस. जैन सभा के प्रधान श्री सुरेश जी जैन एवं युवा मंडल के लोगों ने अगुवानी की ।
इसी तरह अरिहंतरत्न श्री रतनलाल जी जैन भी सामने उपस्थित हुए ।
और जालंधर से नररत्न श्री अशोक जी जैन, नररत्न श्री धर्मवीर जी जैन, नररत्न श्री पृथ्वी चंद जी जैन,
नररत्न श्री राजेंद्र जी जैन आदि सपरिवार उपस्थित हुए ।
और भी दर्शनार्थी निरंतर गुरु चरणों में आकर दर्शन सेवा का लाभ ले रहे हैं ।
25 दिसंबर से प्रवचन जैन स्थानक में 8:15 से 9:30 तक होना संभावित है ।
श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ सदा जयवंत हों