21 दिसंबर रैया

21 दिसंबर रैया
दिव्य वाणी
जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा.
मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात
संतानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा।
गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता,
दिव्या दिवः पतति ते वयसां ततिर्वा
आपके महा अतिशय कारी मुख से जो दिव्य देशना के रूप में वचन बाहर आते हैं तब सुगंधित जल की बूंदों से मुक्त सुखद और मंद वायु के झोंकों के साथ बरसने वाले मंदार, सुंदर,नमेरु, सुपारिजात, संतानक आदि पुष्पों की उर्ध्वमुखी वृष्टि आकाश से हो रही है ।
मंदार सुंदर नमेरू सुपारिजात, संतानक आदि सर्वश्रेष्ठ पुष्प अपनी तीव्र, अनुकूल, सुगंध, वातावरण में बिखेरकर जन मन को ही नहीं, प्राणी जगत को भी उल्हासित कर देते हैं ।
इससे भी बढ़कर प्रभु की दिव्य वाणी । वो अनंतज्ञान, अनंत दर्शन और अनंत संयम से अनुवासित होकर बाहर आती है तो उनकी सुगंध और दिव्यता का तो अंदाज ही नहीं लगाया जा सकता । इसीलिए तीर्थंकर के वचनातिशय पैतीस बतलाए हैं।
( जो हम आपको अलग से बतलाएंगे )
लेकिन प्रभु की वाणी जो भी सुन लेता है वो उसके तन मन आत्मा सभी को आरोग्य देने वाली बनती चली जाती है ।
जिस प्रकार उर्ध्वमुखी फूल की सुगंध ही नहीं, उनकी पत्तियां भी कई औषधियों में काम आती है।
इसी प्रकार प्रभु की वाणी को सुनने मात्र से आत्मा पर से कर्म तो झरते ही हैं । इसी के साथ शरीर के भी कई रोग दूर होने लगते हैं ।
चिकित्सा भी कई तरह की होती हैं । उसमें एक वचन चिकित्सा भी होती है ।
वचन भी कई तरह के होते हैं ।
कोई गद्य में तो कोई पद्य में।
सभी के बोलने की अपनी शैली होती है ।
तानसेन जब गाता था तो सभी मंत्रमुग्ध हो जाते थे ।
और जब तानसेन के गुरु जी गाते थे तब तो सब बेभान हो जाते थे।
तब सोचिए तीर्थंकर की वाणी कितना प्रभाव छोड़ सकती है ।
वो तो अचिंत्य हैं ।
उनकी वाणी ने इंद्रभूति आदि 11 गणधरों को जगाया । मेघकुमार को अर्जुन माली, रोहिणेय चोर को जगा दिया ।
यह बहुत भारी चिकित्सा करती हैं।
तीर्थंकरों की देशना रोग भी मिटाती है और आत्मा को पावन भी करती है ।
जिस प्रकार फूल उर्ध्वमुखी होता है तो पैरों में डंटल नहीं चुभते ।
इसी प्रकार प्रभु की वाणी भी कोमलता लिए हुए हैं ।
वैसे भी हर आत्मा का मौलिक स्वभाव, ऊपर उठना है ।
वो तो कर्मों के कारण दबकर अधोमुखी होती है ।
लेकिन पापी से पापी आत्मा भी जब प्रभु की शरण में आ जाती है तो उनकी वाणी सुनने से उन अमृत वचनों की सुगंध से कर्म निर्जरित होकर दुर्गंध से हटकर सध्दर्म की सुगंध पाती चली जाती है ।
जिस प्रकार फूल अलग रूप, रंग, सुगंध के होते हैं । उसी प्रकार प्रभु की वाणी भी अलग-अलग प्रभाव वाली होती है ।
वो अलग अलग असर करने वाली होती है ।
जैन दर्शन में इसीलिए प्रवचन श्रवण देशना सुनने को प्राथमिकता प्रदान की है ।
आपको जब भी श्रमणों की सेवा में जाना हो तो प्रवचन श्रवण के समय जाइऐ । ताकि आपको जिनवाणी सुनने का लाभ मिले और सुनते सुनते ही आपकी आत्मा को स्पर्श कर जाए तो समकित प्राप्त हो सकती है ।
एक बार समकित मिल गई तो फिर मोक्ष पक्की है ।
यही कारण है कि जिनवाणी सुनना दुर्लभ बतलाया है ।
आज के आधुनिक लोगों को तो प्रवचन सुनने की इच्छा ही कम होती है । कभी होगा तो दर्शन कर आएंगे । इधर उधर की गप्पे हांक लेंगे लेकिन प्रवचन में जल्दी से नहीं जाएंगे।
यह तरीका सही नहीं है ।
कोई भी कैसे भी महाराज हो,जब प्रवचन देते हैं तो अपने जीवन का सारभूत खास ज्ञान सुनाते हैं ।
इसलिए प्रवचन तो अवश्य सुनने ही चाहिए ।
प्रवचन जीवन में उतरें या न उतरें। परंतु सुनने से नहीं चूकना चाहिए ।
आज कल मिथ्यात्व का इतना जबरदस्त प्रभाव हो गया है कि अमुक साधु के प्रवचन,अत्यंत प्रभावी है पर हम नहीं सुनेंगे ।
क्योंकि वो साधु हमारे नहीं हैं।
हमारी संप्रदाय के नहीं हैं इसलिए हम उनके पास नहीं जाते।
जबकि प्रभु तो फरमाते हैं कि मेरा है वह सत्य नहीं जो सत्य है वो मेरा है ।
सत्य के प्रति समर्पण हो ।
साधु के वचन ही प्रभावी होते हैं।
साधु भी शास्त्रानुसार तीर्थंकरों की वाणी ही सुनाते हैं ।
अतः साधु की वाणी भी एक ढंग से तीर्थंकरों की ही है ।
धर्म प्रभावना
21 दिसंबर को सुखे समाधे रैया गांव पधार गए हैं ।
आज जालंधर से गुरुभक्त एवंत जी जैन दर्शनार्थ पधारें ।
श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ सदा जयवंत हों