19 दिसंबर जंडियाला गुरू
सोने के कमल
जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा.
चरम तीर्थकर प्रभु महावीर ने समस्त आत्माओं का हित व- कल्याण करने के लिए दिव्य देशना देना प्रारंभ किया, प्रभु- महावीर की वाणी को जीवन में उतारने की लिए, गुणानुवाद करना आवश्यक हो जाता है।
जैन शास्त्रों में सर्वप्रथम विनय बतलाया है। विनय होगा तो ही गुण प्रकट होंगे। जिसमें विनय, भक्ति, बहुमान नहीं वह गुणों को प्राप्त नहीं कर सकता।
इसलिए उत्तराध्ययन सूत्र का 36 वां अध्ययन विनय- बताया गया है। भीतर में भक्ति, बहुमान, विनय होगा तो – सद्गुण कायम रह सकते है। यदि विनय नहीं तो भीतर के गुण बह जाएँगे। अतः गुणों को कायम रखने के लिए प्राचीन- आचार्यों ने किसी न किसी रूप में तीर्थंकरों के गुणानुवाद- किए, क्योंकि उनके गुणानुवाद मिटते नहीं है। छद्मस्थों के मिट सकते है । छद्मस्थ जिस समय साधना कर रहा है तब तो ठीक है। मिटने के बाद कुछ नहीं, जैसे-साधु छठे गुणस्थान में हैं वह मरकर मोक्ष में नहीं जाता, देवलोक में जाता है। उनके गुणानुवाद बदल जाते हैं। इस प्रकार छदद्मस्थों के – गुणानुवाद को बदल सकते है पर तीर्थंकरों, अरिहंतों के गुणानुवाद बदलते नहीं है, वे स्थाई रहते हैं, अरिहंत की जगह सिद्ध ने ले ली, फिर ऋषभ आदि अन्य तीर्थकर उसी कड़ी के अन्दर आए। अतः आचार्य मानातुंग ने तीर्थंकरों की स्तुति करने के लिए भक्तामर स्तोत्र की रचना की, तीर्थकरों के शुद्ध परमाणु चारों तरफ फैले हुए हैं। लोग सोचते हैं,प्रार्थना क्यों करें? इससे क्या मिलता है। प्रार्थना इसलिए कि जाती है कि तीर्थकरों के शुद्ध परमाणु पूरे world में फैले हुए हैं। हम उनकी स्तुति करके वैसी ही शुद्ध तरंगे प्राप्त कर सकते हैं ।
भक्तामर स्तोत्र में केवल ऋषभदेव की स्तुति मानते है ऐसा नहीं है । क्योंकि ऋषभदेव मोक्ष में चले गए। उनसे डायरेक्ट संबंध नही होता । क्योंकि वे अशरीरी हो गए है। एक अरिहंत सशरीरी होते हैं।
मन वचन काया से विशिष्ट प्रभावी होते हैं । इसलिए सिद्धाणं को नहीं लिया गया, अरिहंत को लिया गया।
क्योंकि वे शरीर सहित होते हैं। उनसे हमारा सम्पर्क बैठ सकता है। इसलिए पहले कहा गया- णमो अरिहंताणं । तीर्थकर महाविदेह- क्षेत्र में विचर रहे हैं।
2 करोड़ केवली सशरीरी अवस्था में विचरण कर रहे हैं। पूरे world में उनके शुद्ध परमाणु फैले हुए हैं। आवश्यकता है उन्हें catch करने की। लंदन में board Casting हुई फिर तरंगों का प्रसारण हुआ। तरंगें आ रही है।
यदि आपने वहाँ का स्टेशन लगाया तो आपका Radio उसे Catch कर लेगा, बारीक से बारीक तरंगे आपके पास पहुँच जाएगी। वैसे ही विश्व भर में सबसे शुद्ध तरंगें तीर्थंकर की है, वह चारों तरफ फैली हुई है। उसे जीवन में उतारने के लिए प्रभु भक्ति का बटन ऑन करना होगा, भीतर में तरंगे आते ही शक्ति का संचार होना शुरू हो जाएगा। यदि भक्त सच्चे दिल से स्तुति करे तो क्या नहीं हो जाता।
उन्निद्रहेम-नवपड्कज-पुंजकान्ति,
पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ।
पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र!धत्त:
पद्मानि तत्र विबुधा:परिकल्पयन्ति।।
ध्यान दीजिए शब्दों की ओर,लोगों को सही अर्थ नहीं आने से वे गन्ने के रस से वचिंत हो जाते हैं।
गन्ना मीठा है पर खाने की विधि नहीं आई तो आपके जबड़े टूट जाएँगे।
गडेंरी करके खाना नहीं आया तो आप छिलके चुसने में ही रह जाओगे।
उन्निद्र हेम नव पंकज-सोने को कमल पुंज कान्ति-उनकी चमक ।
अर्थात् खिलते हुए सोने रूपी कमलों की चमक फैल रही है।
नख मयूख शिखाभिरामौ- हे भगवन्, आपके पैरों के नख के अग्र भाग में शिखा से निकलती हुई फैल रही हैं, पर्युललसन – वे अविराम लग रही हैं। पादो पदानि आपके पैर जहाँ पड़ते है देवता वहाँ पद्मों की रचना कर देते है।
इसी तरह आपकी सेवा में लगे रहते हैं। हम श्लोक को उपर उपर से पकड़ते हैं। आज हमारे सामने तीर्थंकर नहीं है।
फिर देवताओं के द्वारा पद्मों की रचना करने से क्या मतलब?
योग शास्त्र में बताया गया है कि मनुष्य के ह्दय कमल है, नाभि कमल है, सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है नाभि- कमल । क्योंकि वह रसवाहिनी शक्ति देता है। अत: हे जिनेश्वर ! आपके पैरों को जो हृदय कमल, नाभिकमल में टिकाता है। आपका चितंन,आपकी भक्ति में स्थिर रहता है। वहाँ देवता सोने के कमल खिला देते हैं।
आपको भी चाहिए सोने के कमल।
पर घर बैठे तो सोने के कमल नहीं आते। इसलिए दुकान जाना है ,सोने के कमल पाने के लिए । दिन भर काम करने पर भी कमाई नहीं होती, थोड़ी बहुत होती है तो भी सोने के कमल नहीं खिलते। ऐसा क्यों होता है कि एक जैसी ही दो दुकानें, एक दुकान पर भीड़ लग रही है, दुसरी दुकान पर कोई दिखाई नहीं – देता इसके पीछे कारण क्या है? Scientist भी यह कारण नहीं बता सकते । बाहर से कोई कारण नहीं। मानना पड़ेगा कि जिस दुकान पर भीड़ लग रही हैं। उस व्यक्ति के नसीब- अच्छे है।
एक Expert Industries प्रगति नहीं कर पा रहा है और सामान्य व्यक्ति इण्डस्ट्री लगाता है खुब प्रगति कर लेता है। इसका मतलब वह काम नहीं कर रहा, उसका नसीब काम कर रहा है। आदमी के नसीब काम कर रहे हो तो एक घंटा दुकान पर बैठे तो भी सारा काम आराम से चलेगा। यदि भाग्य काम नहीं कर रहा तो दिन भर जिन्दगी भर बैठे रहो कुछ नहीं हो सकता। आपको सोने के कमल बैठाने की जरूरत नहीं। क्योंकि परमात्मा के चरणों की नख में से ऐसी कान्ति निकलती है कि जो सोने के कमल से भी ज्यादा कान्ति होती है। ऐसे चरणों की पूजा करली तो फिर बाहरी सोने के कमलों की जरूरत नहीं ।
कहते हैं-पूत रा पग पालने में ही दीखे”हर व्यक्ति के पैर चिन्हों से ही मालूम हो जाता है कि वह व्यक्ति कैसा है। बच्चे के गर्भ में आते ही मां के विचारों में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। कई बार बुजर्गों से सुना करते हैं- जबसे यह बच्चा जन्मा है तब से दिन- दुगुनी, रात चौगुनी उन्नति हुई हैं। यह हकीकत है। धन्ना अणगार के पहले तीन भाई हुए तो करोड़ों के मालिक झोपड़ी में आ गए। पर धन्ना के पैदा होते ही नल गाडने के लिए जगह खोदी वहाँ भी सोने के कलश निकला । घर में धन ही धन हो गया।
इसलिए परमात्मा को हृदय में बिठाना है।
हम पुण्यवानी को कैच करने की कोशिश करें।
हमने बाहर के कमलों को पकड़ रखा है । हमें बाहर के बटन नहीं, अन्दर के बठन दबाने है । धर्म को अपने भीतर बिठाइये । धन अपने आप आ जाएगा । पर हम उल्टा काम कर रहे है ।
हम परमात्मा को छोड़कर धन कमाने में लगे हैं। जितना कमाते हैं, उतनी ज्यादा Tension बढ़ती जाती है और व्यक्ति को शान्ति नहीं मिलती। हमने सोने के कमल को सामने ‘कर दिया और परमात्मा को दबा दिया ।
एक कहानी आती है।
एक बार स्वर्गलोक में विष्णु व लक्ष्मी के बीच विवाद छिड़ गया, विष्णु ने कहा- सुन लक्ष्मी मेरे मन्दिर ज्यादा है। करोड़ों मेरे भक्त हैं। मेरे मन्दिरों पर मेरे भक्त बहुत खर्चा करते। है। तब विष्णु जी से लक्ष्मी ने कहा- मेरे भक्त ज्यादा है। विष्णु जी बोले- तुम्हारे मन्दिर ही कहाँ है? तुम्हें पूजता ही कौन है? आज लक्ष्मी जी के २ पैसे के कलेण्डर खरीदते है, दैनिक भास्कर,पंजाब केशरी में भी लक्ष्मी जी के फोटु आते है वो काटकर उसकी पूजा कर लेते है फिर उसे सड़क पर फेंक देते है। आज तो कलेण्डर खरीदने की भी जरूरत नहीं देख ले । तेरी पूजा कहाँ हो रही है मेरी पूजा करने वाले तो हजारों लोग है । लक्ष्मी बोली- हे प्राणनाथ! लोग आपको मेरे कारण पूजते है, क्योंकि मैं आपके पीछे खडी हूँ। विष्णुजी को यह बात अच्छी नहीं लगी, विष्णु जी कहने लगे-लक्ष्मी तु फालतु टाँग अड़ा रही है। तुझे विश्वाश नहीं तो परीक्षा करके देख लो | मेरे भक्त ज्यादा है या तेरे भक्त ज्यादा है। परीक्षा करने के लिए पृथ्वी पर आ गए ।
विष्णु जी नीचे उतरे और एक बुढे सन्यासी का रूप बनाया। ‘भगवा कपड़े पहने, हाथ में कमण्डल लिया, त्रिशूल लिया और यह कहते हुए-‘अलख निरंजन सब दुखभंजन कहते हुए चलने लगे ।
गलियों में यही आवाज लगाते -2 भजन’ बोलते हुए घुम रहे थे। एक जगह विश्राम करने के लिए बैठे – वहाँ कुछ लोग बैठे थे। वे कहने लगे- बाबा आए बाबा आए हैं । सभी लोग बाबा जी को घेरकर बैठ गए। विष्णुजी ने सबको कथा सुनाई। लोगों को कथा बहुत अच्छी लगी। दुसरे दिन और अधिक लोग आए, तीसरे दिन और अधिक। ऐसे करते -करते 10-15 दिन में वहाँ ‘भीड इकट्ठी होने लगी। 10-15 दिन के बाद विष्णुजी वहाँ से जाने लगे तो लोगों ने उनको रोका। तब विष्णुजी ने कहा मैं चातुर्मास काल में एक ही जगह रुकता हूँ। मुझे आगे विहार करना है।
एक सेठ ने कहा- महाराज! आप हमारे यहाँ ही चातुर्मास करिए। हमारे मकान में रहने की कृपा करायें। विष्णु- जी वहाँ विराज गए। आकाश में लक्ष्मी ने यह सब देखा, वह भी नीचे आई और एक बुढ़िया का रूप बना लिया। उसकी कमर टेढ़ी वह टिक-टिक करके चल रही है। एक घर के आगे रुकी और जोर से आवाज लगाई-कोई पानी पिला दो, बहुत प्यास लग रही है। सुबह सुबह का टाइम सब जल्दी में थे, किसी को आफिस जाने की जल्दी, किसी को स्कूल जाने की जल्दी। इसलिए कोई स्नान कर रहा है, कोई मंजन कर रहा है, कोई नाश्ता कर रहा है। बुढ़िया की आवाज कौन सुनता। बुढ़िया कहने लगी- यह क्या जगंल है ? कोई सुनता ही नहीं। माँ जी कहती है- अरे! प्यास बहुत लग रही है पानी पिला दो, तभी घर के भीतर सासु ने बहु से कहा- बहु!जाकर उस माँ जी को एक लोटा पानी तो पिला दे । सासु के कहने पर बहु तनफट करती हुई पैर पटकती हुई लोटा भरकर पानी माँ जी के लिए ले गई। माँ जी ने फटे पुराने कपडें में हाथ डाला और एक लोटा निकाला। एक घूँट लोटे से पानी पीया और यह कहकर कि पानी गर्म है लोटा घर में फेंक दिया, फेंकते ही लोटा सोने का हो गया,बहु देखती रह गई अरे! लोटा तो पीला पीला हो गया। माँ जी बहु को कहती है कि मैं एक बार जिस – लोटे से पानी पीती हूँ दुसरी बार उस लोटे से पानी नहीं पीती, बहु सोचने लगी- इसके पास तो कोई जादुई चीज है।
वह तुरंत अन्दर गई उसने फ्रिज खोला, ठंडे ठंडें पानी की एक बोटल निकाली । उसमे रूअफजा डाला, पानी को मीठा-2 किया, और माँ जी को पिलाने के लिए ले गई। माँ जी ने अपने थैले में हाथ डाला और एक लोटा सोने का निकाला उस लोटे में ठंडा-2 पानी पिया और फिर उसे घर में फेंक दिया ।
घर के सदस्य जो जल्दी में थे, वे सब काम छोडकर माँ जी से विनंती करने लगे कि आज तो हमारे यहाँ खाना, खाना ही पडेगा, वे सब माँ जी पर फिदा हो गए । वें कहने लगे आप कहाँ गर्मी में गलियों में भटकोगे, आप तो हमारे घर में एसी के पास बैठो। आपको गर्मी नहीं लगेगी । माँ जी से बहुत विनंती करने पर उन्होने स्वीकृति दे दी। उस दिन कोई भी सदस्य व्याख्यान में नहीं गया।
महाराज ने सोचा- आज ऐसी क्या बात हो गई । उस घर के 20-25 जने व्याख्यान में आते हैं।
आज कोई भी नजर नहीं आ रहा।
महाराज ने लोगों से पूछा- क्या बात है आज अमुक घर का कोई भी व्यक्ति व्याख्यान में नहीं दिखा। लोगों ने कहा-हमें पता नहीं वे क्यों नहीं आए । इधर माँ जी के लिए तरह-2 के व्यजंन तैयार हुए । उन्हें तो अपने घर की कटोरियाँ, थालियां सभी सोने की करवानी थी। किसी भी तरीके से, माँ जी के हाथ बर्तनों के लगाने थे ताकि सारे बर्तन पीले-2 हो जाए। उन्होंने माँ जी के लिए तरह-2 की कटोरियों, थालियों में खाना लगाया और माँ जी को मनवारें कर-करके खाना खिलाया, सारे बर्तन सोने के हो गए । उधर महाराज ने महिलाओं से
पूछा- सारी महिलाएं एक जैसी नहीं होती, कुछ गंभीर, कुछ उतावली । महिलाओं के भीतर में बात नहीं टिकती। एक महिला से रहा नहीं गया उसने सारी बात महाराज को बता दी । धीरे-2 पूरे गाँव में चर्चा फैल गई। लोगों की भीड़ माँ जी के पास इकट्ठी हो गई। सभी मनवारें करने लगे-मेरे घर आओ-2 । माँ जी ने कहा- कहाँ जाऊँ कहाँ नहीं- जाऊँ। लोग पालकी में बिठाकर अपने -२ घर ले जाते ।
माँ जी का Breakfast, Lunch, Dinner सब अलग-2 जगह- होते। इधर महाराज की आधी public साफ हो गई, धीरे-2 पूरी paltation साफ हो गई। महाराज ने सोचा- आखिर बात क्या है? यह जानने के लिए ध्यान लगाया । सारी बात समझ आ गई। वह सोचने लगे 15-20 दिन मेहनत करी,अब सारा काम लक्ष्मी ने चौपट कर दिया ।
इधर महाराज जिस घर में ठहरे थे।
उस घर का मालिक कहने लगा- मेरा मकान अब जल्दी खाली करो। क्योंकि जब माँ जी ने उसे कहा था कि मैं तेरे घर नहीं आऊँगी और सब जगह जाऊँगी क्योंकि तेरे यहाँ बुढ़ा खूसट सन्यासी रहता है। जब तक वह सन्यासी रहेगा तब तक नहीं आऊँगी। इसलिए मकान मालिक महाराज से मकान खाली कराना चाहता था ।
महाराज ने कहा- तुमने 4 महीनें का एग्रीमेंट किया है। अभी 20 दिन भी पूरे नहीं हुए हैं। मैं मकान खाली नहीं करुंगा, मकान मालिक ने धमकी दी, आधे घंटे में खाली कर देना। महाराज ने खाली नहीं किया तब मकान मालिक ने नौकर से कहा- इस सन्यासी को उठाकर बाहर फेंक दो, नौकरों ने उसके कमण्डल, चिमटा उठाकर फेंक दिया। फिर सन्यासी की जटा को पकड़कर घर से बाहर कर दिया। फिर मकान मालिक अपने चार आदमियों को लेकर- माँ जी के पास गया, माँ जी को पालकी में बिठाकर घर ले आया, विष्णुजी की नजर लक्ष्मी जी की नजरों से मिल गई। नजरें बहुत कुछ कह जाती है। लक्ष्मी जी इशारों से ही बोली- देख तेरे भक्तों के हाल।
सन्यासी की नजर झुक गई ।
माँ जी घर के अन्दर गई और मकान मालिक से कहने लगी सेठ एक बात बता तुने सन्यासी से 4 महीने का Aggrement किया और उसके साथ वादाखिलाफी की, कल मेरे साथ करेगा। मेरे को घर से बाहर निकाल देगा ।
मकान मालिक बोला- नहीं-2 माँ जी, आप हमारे घर में आराम से रहो 4 दिन, 4 महीने, 40 वर्ष, 40 पीढ़ी आपकी सेवा करेंगे । माँ जी बोली- मुझे तुम पर विश्वाश नहीं। इसलिए मुझे यहाँ नहीं रहना। लक्ष्मी जी ने विष्णुजी का हाथ पकड़ लिया और दोनों आकाश मे चले गए। आकाश में एक तरफ लक्ष्मी जी, एक तरफ विष्णुजी खड़े हो गए। लोग दुविधा में पड़ गए। वे कहने लगे एक बार वापस नीचे आ जाओ। पर अब क्या ? जिस आदमी ने घर से निकाला वह पश्चात्ताप करने लगा । यदि मैं सन्यासी को घर में रख लेता तो लक्ष्मी जी को झक – मारकर वहाँ आना पड़ता। आपके यहाँ भी परीक्षा हो रही हैं।
एक तरफ धन खड़ा है दुसरी ओर धर्म खड़ा है। हम क्या करें?
यदि धर्म को छोड़ दिया तो कैसे काम चलेगा। इसलिए परमात्मा को दिल में बिठाने की आवश्यकता है।
अन्त में धर्म की विजय है।
यदि नसीब को ठीक नहीं किया तो धर्म की जड़े हरी हो नहीं सकती।
अब एक बार श्लोक का सार समझ लीजिए-
हे जिनेंद्र प्रभु । खिले हुए नवीन स्वर्ण कमल के समान कांति वाले और नखों के अग्रभाग से चारों ओर फैली हुई किरणों की प्रभा से अतीव मनोहर आपके चरण कमल जहां भी पडते हैं वहां देवगण कमलों की रचना करते हैं।
इससे अनेक अर्थ सिद्ध होते हैं।
जहां भी अरिहंत प्रभु के पगलिए पड़ते हैं, वहां भौतिक संपत्ति का अंबार लग जाता है ।
ऐसे तीर्थंकर देव इस भरत क्षेत्र में अभी नहीं है ।
लेकिन अगर ऐसे प्रभु को स्वयं के अंदर में नाभि कमल में रखकर दिल-दिमाग में मन से विचरण करवाया जाए तो अध्यात्मिक और भौतिक दोनों का विशिष्ट लाभ होता है ।
शास्त्रों में मन-वचन-काया तीन योग बतलाए हैं । जबकि काया से भी अधिक शक्ति संपन्न मन बतलाया है। मन के माध्यम से तीव्र शुभ अध्यवसायों के साथ विबुध का दूसरा अर्थ विशेष रूप से जागृत होकर तीर्थंकरों के चरण कमलों को अंदर में प्रतिष्ठापित करना भरत क्षेत्र के पांचवें आरे में भी विशिष्ट लाभदायक है ।
धर्म प्रभावना
19 दिसंबर को सवेरे धुंध हो जाने से प्रवचन भी रुका और विहार भी रुका । 9:30 बजे बाद सूर्य के ताप से धुंध बिखर जाने पर आहार पानी लाया गया ।
फिर 10:30 बजे बाद विहार प्रारंभ हुआ । करीब 10 किलोमीटर पर स्थित चांगला गांव में सुरजीत पैलेस में आचार्य प्रवर का अपने शिष्यों के साथ पदार्पण हुआ । यहां की भाई की भावना बहुत अच्छी है ।
उनका कहना है हमारे पैलेस में तो 36 ही कौम के तरह तरह के लोग आते हैं ।
लेकिन आचार्य प्रवर के पधारने पर हमारा पैलेस शुद्ध हो जाएगा।
इसलिए उन्हें जरूर लाया जाए।
आपकी यह सोच प्रेरणादायक है।
संतों के पगलिए पुण्यकारी होते हैं ।
आज दोपहर में जालंधर से गुरु भक्त सेवाव्रती श्री राकेश जी जैन एवं महिलारत्न पंकज जी जैन, जैन कॉलोनी से दर्शनार्थ उपस्थित हुए । और धर्म चर्चा का लाभ लिया ।
जंडियाला के युवा मंडल से युवारत्न संयम जी,सम्यक जी आदि ने भी विहार का पैदल चलकर लाभ लिया ।
अरिहंतरत्न श्री रतनलाल जी साहब जैन की गुरु भक्ति सराहनीय है ।
उनका आचार्य प्रवर के विहार के प्रति सुरक्षा और स्वास्थ्य के प्रति सावधानी सजगता हर दिन बनी हुई है।
अंत में आप सभी से विनम्र अनुरोध है कि जालंधर में निर्माणाधीन श्री अरिहंत ज्ञान गुरु गौशाला में दान देना न भूलें ।
आपके दान से 1 जनवरी तक गौशाला प्रारंभ हो जाए तो अतिशय लाभकारी है ।
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श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ सदा जयवंत हों