29 दिसंबर कपुरथला

29 दिसंबर कपुरथला
लक्ष्मी जबर्दस्ती आती है
जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म. सा.
स्तोत्र-स्त्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धाम्,
भक्त्या मया रूचिर-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम् ।
धत्ते जनो य इह कंठगता- मजस्रम् ।
तं मानतुंग-मवशा समुपैति लक्ष्मीः ।।
आचार्य श्रीमानतुंग जी ने प्रभु को संबोधित करते हुए कहा है कि- हे जिनेंद्र देव! –विचित्र पुष्प रूप आपके गुणों से निबद्ध स्तोत्र कि मेरे द्वारा रचना की गई है । जो आज अजस्र लगातार प्रभु के उन गुणों को नाम से स्फुरित कर ह्रदय से निबद्ध कंठ से निकालता है, वह मानतुंग प्रभु के मान से उन्नत हो उठता है। उसे लक्ष्मी स्वयंमेव वरण कर लेती है।
जिस प्रकार बगीचे में रंग-बिरंगे फूल होते हैं । उनकी सुषमा निराली होती है। इसी के साथ उनकी सुवास भी अलग-अलग प्रकार की होती है। जो मन मस्तिष्क को तरोताजा कर देती है। इसी प्रकार आपके भीतर हजारों लाखों गुणों रूप विभिन्न रंगी, तरह-तरह की विशेषताओं वाला बगीचा भरा हुआ है।
उसके भीतर में पैठ करने का एक ही मुख्य तरीका है डूबकर भक्ति करना ।
बस, आप उनके गुणों में डूब जाइए आपका जीवन आनंद से सराबोर हो जाएगा। कई नौजवान हो या बुजुर्ग हो किसी स्वादिष्ट व्यंजन को याद करते हैं तो उसकी बात बडे चटखारे से करते पाए जाते हैं ।
कोई विलासी नौजवान, सुंदरी लड़की को देखकर मन में उसी का गोट, गोटते रहते हैं। उसी की सोच में डूबे रहते हैं, अपने दोस्तों के सामने उसी की चर्चा करते रहते हैं । जो मोह, गहरे कर्म बंध का कारण है।
क्या ही अच्छा हो, ऐसी ही निमग्नता, भगवान की भक्ति में आ जाए।
जिस प्रकार कि तुलसीदास जी का राग भाव अपनी पत्नी पर था । वो 1 दिन भी अपनी पत्नी के बिना नहीं रह सकते थे। जब कुछ दिन के लिए पत्नी पीहर गई। तो वो उसी रात अपने ससुराल पहुंच गए ‌ सर्दी का मौसम, गहरी अंधेरी रात । सीधा दरवाजा, खुलवाना अच्छा नहीं लग रहा था। ससुराल वाले क्या सोचेंगे, मजाक उड़ाएंगे।
तुलसीदास जी, मकान के पीछे गए। अंधेरे में कड़कती बिजली के प्रकाश में उन्हें रस्सी दिखाई दी वें उसे पकड़कर ही ऊपर चढ़ गए। अपनी पत्नी रत्नावली के पास कमरे में पहुंच गए ।
रत्नावली को आश्चर्य हुआ की आप, कैसे आ गए । उन्होंने सारी बात बताई तो रत्नावली, लालटेन लेकर पीछे लटक रही रस्सी को देखने गई तो वह रस्सी नहीं थी बल्कि तेज सर्दी से एक भयंकर सर्प दिवार से चिपका हुआ था। उसको पकड़कर तुलसीदास जी चढ़े थे।
पत्नी ने यह तुलसीदास जी को दिखाया और कहा कि सर्प काट जाता तो क्या होता।
यहीं लीला ही समाप्त हो जाती ।
जितना मुझ पर मोह है, उतना अगर भगवान पर होता तो क्या नहीं हो जाता।
बस, पत्नी की यह बात तुलसीदास जी को तीर की तरह हृदय में लगी और मोह का आवरण टूटकर अलग हो गया और वे सन्यासी बन गए और रामायण की रचना की।
जो आज भी जन जन के मुंह पर है।
इसी तरह सुभद्रा की जबान लगी, उनके पति धन्ना जी को कि कहना सरल होता है, करना कठिन होता है।
तीर की तरह ऐसी अंदर घुसी बात, कि धन्ना जी एक झटके में खड़े हो गए और सारे मोह बंधन तोड़कर आत्म साधना में लगकर सिद्धि पाली ।
प्रभु की भक्ति में भी इसी तरह निमग्नता चाहिए। भक्तियोग की उत्कृष्टता से भी सिद्धि तक पहुंचा जा सकता है।
इसीलिए श्लोक में आया। अजस्र–अर्थात लगातार भक्ति।
जिस प्रकार प्रेम के रसिया में लगातार प्रेमिका बसती है उससे अधिक हमारे में परमात्मा अंदर में बसने चाहिए।
पता नहीं क्यों? आदमी पोद्गलिक रुप पर फिदा होकर अपनी जिंदगी गंवा बैठते हैं। पुद्गल का स्वभाव, सड़न गलन, विध्वंसन गुण है। भौतिक शरीर हो या कोई भी जड़ पदार्थ हो। वो सदा एक समान नहीं रहता। फिर उसके पीछे पागलों की तरह लगकर जीवन खराब करना क्यों?
भौतिकता का सुख क्षणिक है जबकि परमात्मा की भक्ति, परमानंद देने वाली होती है। ऐसी भक्ति करने वाले साधकों की चरण की उपासना, लक्ष्मी स्वयं करती हैं।
कहते हैं महान आध्यात्म योगी आनंदघन जी ने एक पत्थर की शिला पर यूरिन किया तो वो पूरी सोने की बन गई। इस माध्यम से संबंधित व्यक्ति को उपदेश दिया कि प्रभु भक्ति के सामने यह सब बातें नगण्य हैं ।
जो सच्चा, प्रभु भक्त होता है उसे कभी लक्ष्मी आकर्षित नहीं कर सकती।
उसकी दृष्टि में सोना और मिट्टी हीरा कंकर एक समान है।
अतः शास्त्रीय पाठों के अर्थ के साथ प्रभु भक्ति करके अपने मानव जीवन को सफल बनाइए।
धर्म प्रभावना
दिनांक 28 को श्री अरिहंत मार्गी जैन महासंघ के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्री मनोज जी जैन दिल्ली राष्ट्रीय महामंत्री श्री शांतिलाल जी डोसी,रेखा जी एवं ऋसभ जी डोसी जयपुर से सपरिवार, एवं युवा महासंघ के अध्यक्ष श्री शरद जी मालू एवं शुभम जी मालु आदि उपस्थित हुए ।
29 दिसंबर को प्रातः प्रवचन हुआ उसमें आचार्य प्रवर ने उपासक दशांग सूत्र के विशिष्ट प्वाइंटों को समझाया ।
इसी के साथ गुजरात के खेमा देदराणी, अहमदाबाद के सेठ श्री खुशालचंद जी, राजस्थान के भामाशाह और पंजाब के श्री टोडरमल जी जैन आदि के प्रसंगों को स्पष्ट करते हुए जैन समाज की देश सेवा का परिचय प्रस्तुत किया ।
29 तारीख को जालंधर से श्री विशाल जी पल्लवी जी जैन,नररत्न श्री करन जी जैन उपस्थित हुए ।
नररत्न श्री अनिल जी रेखा जी सोनी एवं नररत्न श्री खेमचंद जी मुकीम, नररत्न श्री देवेंद्र जी जैन दिल्ली से आदि उपस्थित हुए ।जालंधर से नररत्न श्री सुनील जी, नररत्न एवंत कुमार जी आदि उपस्थित हुए ।
श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ सदा जयवंत हों