26 जनवरी सुन्दरनगर लुधियाना

उच्चारण नहीं
उच्च आचरण हो
जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी महराज.सा.
आदमी साधनों से नहीं साधना से श्रेष्ठ बनता है ।
आदमी भवनों से नहीं भावना से श्रेष्ठ बनता है ।
आदमी उच्चारण से नहीं
उच्च आचरण से श्रेष्ठ बनता है।
आधुनिक युग में बंगले, गाड़ी, कपड़े, ज्वेलरी से लोग अपने आपको ऊंचा प्रतिष्ठापित करने में लगे हैं । अपनी झूठी प्रतिष्ठा को बनाने के लिए जिंदगी का अधिकांश समय दांव पर लगा देते हैं ।
फिर भी ऐसी प्रतिष्ठा अंतर दिल में सुगंध पैदा करने वाली नहीं बनती ।
श्रीमंताई कितनी भी कर ले पर सुख नहीं मिलता ।
श्रीमन्ताई, प्रदर्शन में नहीं आत्म दर्शन से फलती है ।
श्रावक हो या साधु हों सभी अपनी यश प्रतिष्ठा में अधिक लगे हैं ।
साधु भी अपने भक्त कितने हैं, कितने सेठ, सत्ताधारी उनको झुकते हैं, प्रवचनों में भीड़ कितनी आती है यह सब, साधु के उच्चकोटि होने का पैमाना बनता जा रहा है ।
जैन साधु,खुद भले पैसा नहीं रखता है पर पैसे वालों को भक्त बनाकर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता है तो कहां रही साधुता जब भी कोई तीर्थंकर जैन संन्यास लेते हैं तो इंसान तो क्या देव,दानव,इन्द्र भी उनकी सेवा में खड़े रहेंगे ।
लेकिन जब वो साधना में विचरण करते हैं तो एक को भी साथ में नहीं रखते ।
यहां तक कि जो परिचित गांव शहर,घर हो वहां भी नहीं जाते।
कोई यह जान जाए कि यह राजा सिद्धार्थ के पुत्र हैं और राजकुमार समझकर उनको साधु जीवन में सम्मान करें उस जगह भी वो नहीं जाते ।
उन्हें सम्मान चाहिए ही नहीं ।
जहां लोग उन्हें साधारण भिक्षुक समझे । उनकी अवहेलना करें । वहां जाते रहें ।
वो अपनी आत्मा को कसौटी पर कसते हैं कि मैं राजकुमार रहा हूं देव,दानवेन्द्र भी मेरे चरणों में झुकते हैं यह अहंकार ना पनपे इसके लिए साधारण भिक्षु बनकर जहां अपमान होता है, वहां भी प्रसन्न रहते हैं ।
तभी आत्मा के अंदर से सिद्धत्व के गुण प्रकट होते हैं ।
हमें भी तीर्थंकरों से प्रेरणा लेकर समता, निरभिमानता लाने की आवश्यकता है ।
इस साधु ने इतना धन त्यागकर साधु बना है या यह साधु इतना क्रियावादी है, तपस्वी है,विद्वान है वक्ता है यह परिचय देकर हम भी अगर बाहरी प्रतिष्ठा कमाने में लगे हैं तो हम सिद्धत्व अवस्था नहीं जगा पाएंगे ।
इसलिए हमें साधनों में नहीं
साधना में जीना होगा ।
धर्म प्रभावना
26 जनवरी को सुंदरनगर जैन स्थानक में आचार्य प्रवर ने प्रवचन के साथ ही णमोत्थुणं की साधना कराई ।
पाठ का उच्चारण विद्वान संत रत्न श्री गीतार्थ मुनि जी म.सा. ने करवाया ।
सभी ने णमोत्थुणं पाठ करने की विधि सीखी ।
प्रवचन के बाद वहां से करीब साढे 5 किलोमीटर का विहार कर उधमसिंह नगर महिलारत्न श्री कमला जी, नररत्न श्री तनुज जी, श्वेता जी जैन के निवास स्थान पर पधारे ।
यहां पर आगरा से नररत्न श्री राघव जी एवं महिलारत्ना नीति जी गुरु चरणों में दर्शनार्थ उपस्थित हुए ।
जालंधर से नररत्न श्री संत कुमार जी, मुनीष जी, महिलारत्न ज्योति जी भाविका जी आदि एवं नररत्न अर्पण जी जैन पहुंचे ।
जनपथ से नररत्न राहुल जी, गरिमा जी, अगरनगर से नररत्न आदित्य जी शिवानी जी गुरु चरणों में अपने अपने निवास स्थान पर पधारने की भावना लेकर दर्शन सेवा में उपस्थित हुए।
श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ सदा जयवंत हों