23 जनवरी सुंदरनगर लुधियाना

मिलते रहोगे तो जिंदा रहोगे
जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी महाराज सा.
लोग अक्सर कहते हैं, जिंदे रहें तो फिर मिलेंगे ।
लेकिन एक सच्चे दोस्त ने
क्या खूब कहा कि
मिलते रहोगे तो जिंदा रहोगे ।
वो दोस्त कौन जिससे मिले ।
वो है, अरिहंतों की वाणी ।
संतों की सत्संग ।
जिनवाणी सुनते रहोगे तो मनोबल मजबूत रहेगा ।
मन की मजबूती, तन के रोगों को रोकती है क्योंकि शास्त्रों में आया है
जहां अंतो तहा बाहिं
जैसा अंदर में होगा बाहर भी वैसा हो जाएगा ।
जब वीडियो कंप्यूटर के माध्यम से हजारों किलोमीटर दूर घट रही घटनाओं को लाइव टेलीकास्ट तुरंत देख सकते हैं तो इसी प्रकार महाविदेह क्षेत्र में विराजमान तीर्थंकरों के दर्शन क्यों नहीं कर सकते ।
लाइव टेलीकास्ट करने के लिए णमोत्थुणं की भक्ति का बटन ऑन करना पड़ेगा ।
अरिहंतों की भक्ति रूप दोस्त आपके दोनों भव सुधार देगा।
तीर्थंकर भी संवत्सरी मनाते हैं तो वो संवत्सरी को क्या विशेष करते हैं ।
तीर्थंकर प्रतिक्रमण करते नहीं, क्योंकि उनके कोई दोष नहीं लगता ।
तीर्थंकर बनने के बाद व्यावृत्त भोजी नित्य आहार करते हैं ।
उपवास भी नहीं करते तो फिर संवत्सरी कैसे मनाते हैं वो । संवत्सरी के दिन जनकल्याण एवं प्राणी मात्र की रक्षा करने के लिए विशिष्ट देशना देते हैं ।
क्योंकि तीर्थंकर जीव रक्षा के लिए उपदेश देते हैं ।
ऐसा प्रश्न व्याकरण सूत्र में बतलाया है ।
इसीलिए तीर्थंकरों के संपर्क में, सानिध्य में बने रहोगे तो बचे रहोगे ।
आज के युग में संतों की संगत बराबर करते रहिए वो आपकी मन ऊर्जा को बराबर चार्ज कर देंगे ।
मन स्वस्थ तो तन स्वस्थ ।
जैसे कैंसर वाले मरीज को डाक्टर दोस्त का पर्चा चला गया । उसमें लिखा था कि तुम्हें कोई बीमारी नहीं है गुड़ राब पियो ठीक हो जाओगे ।
जबकि पर्चा किसी और के लिए था, पर पहुंच कही और गया ।
फिर क्या था कैंसर का बीमार खुश हो गया ।
उसके जेहन में बैठ गया कि मुझे कैंसर नहीं है ।
वो खुशी-खुशी 20 साल तक जिंदा रहा है ।
अत: तन मन के तार परमात्मा से जोड़ने की जरूरत है ।
धर्म प्रभावना
23 जनवरी का प्रवचन सुंदरनगर में हुआ ।
आचार्य प्रवर ने फरमाया कि जब वीडियो कॉलिंग के माध्यम से अमेरिका में बैठे पुत्र से पिता यहां बैठे बैठे सीधी आमने सामने बैठ कर बात कर सकता है ।
तो साधना के माध्यम से हम महाविदेह क्षेत्र में विराजमान विहरमान, तीर्थंकरों से भी जुड़ सकते हैं ।
आदि बातें बताई ।
लोग परम ज्ञानी, ध्यानी,संयमी संतों से जुड़ते जा रहे हैं ।
आचार्य प्रवर ने महिलाओं की प्रार्थना पर मंडल की सभा में विराजकर उन्हें भी विविध तत्व चर्चा करके महत्वपूर्ण बातें समझाई ।
जालंधर गौशाला
अभी जालंधर की गौशाला चालू करने में समय लग रहा है ।
उनमें धनराशि की सख्त आवश्यकता है ।
कर्तव्यनिष्ठ लोग, निर्माण चालू रखे हुए हैं ।
प्राप्त दानराशि से भी आठ लाख रुपए अधिक लग चुके हैं और भी लग रहे हैं ।
जैसे तैसे गौशाला चालू करना है।
जीवदया से बड़ा कोई धर्म नहीं है।
आप अपनी संपत्ति का खुल्ले दिल से उपयोग करें और गौशाला को चालू करने में सहायक बने ।
प्राप्त दानराशि-श्री आशीष जी जैन पुणे-2000 प्राप्त हुए । धन्यवाद
श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ सदा जयवंत हों