Month: December 2022

28 दिसंबर दृष्टि सम्यक बनावें

28 दिसंबर दृष्टि सम्यक बनावें भक्तामर जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म. सा. चांदनी के बीच चेतन की चांदनी को जगाने की आवश्यकता है। आयुष्य की यह चांदनी जिन्दगी को समझने का मौका दे रही है। हम उसके स्वरूप को पहचाने व अंधेरे में भी चाँदनी की तरह रहना सीख जाए। जिस प्रकार प्राचीन युग में …

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27 दिसंबर कपुरथला

27 दिसंबर कपुरथला अद्भुत विभूति है अरिहंतों की जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. इत्थं यथा तव विभूति- रभूज् – जिनेन्द्र्र ! धर्मोपदेशन – विधौ न तथा परस्य। यादृक् – प्र्रभा दिनकृत: प्रहतान्धकारा, तादृक्-कुतो ग्रहगणस्य विकासिनोऽपि जैसी विभूति आपकी है वैसी किसी की नहीं है । धर्मोपदेश देने की विधि भी आप जैसी किसी की नहीं …

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26 दिसंबर कपुरथला

26 दिसंबर कपुरथला कौन रोक सकता है जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. सम्पूर्ण- मण्डल-शशांक – कला-कलाप- शुभ्रा गुणास् – त्रि-भुवनं तव लंघयन्ति। ये संश्रितास् – त्रि-जगदीश्वरनाथ-मेकं, कस्तान् निवारयति संचरतो यथेष्टम् ये जो जिंदगी की किताब है वो किताब भी क्या किताब है इंसान जिल्द संवारने में व्यस्त हैं और पन्ने बिखेरने को बेताब है । …

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25 दिसंबर रविवार बचने का तरीका

25 दिसंबर रविवार बचने का तरीका जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. अप्पाखलु सययं रक्खियव्वो, सव्विंदिएहिं सुसमाहिएहिं । अरक्खिओ जाइपहं उवेइ, सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ।। निश्चय ही अपनी आत्मा की रक्षा करनी चाहिये । सभी इंद्रियों पर नियंत्रण करके और अपन को सुसमाधि में ला करके जो आत्मा की रक्षा नहीं करता वो एकेन्द्रीय से पंचेन्द्रिय तक …

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24 दिसंबर कपुरथला

24 दिसंबर कपुरथला सद्धर्म तत्व कथनैक जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. स्वर्गापवर्ग – गम – मार्ग – विमार्गणेष्ट:, सद्धर्म- तत्त्व – कथनैक – पटुस्-त्रिलोक्या:। दिव्य-ध्वनि-र्भवति ते विशदार्थ-सर्व- भाषास्वभाव-परिणाम-गुणै: प्रयोज्य: हे प्रभु, आपकी दिव्य देशना, विशद अर्थ वाली है, समवसरण में जो जैसा भी प्राणी बैठा हो, चाहे पशु हो पक्षी हो, इंसान हो या देवता …

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23 दिसंबर सुभानपुर

23 दिसंबर सुभानपुर भामंडल प्रभु का जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. शुम्भत्-प्रभा- वलय-भूरि-विभा-विभोस्ते, लोक – त्रये – द्युतिमतां द्युति-माक्षिपन्ती। प्रोद्यद्- दिवाकर-निरन्तर – भूरि -संख्या, दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम् हे प्रभु आपका शुम्भत्- स्वच्छ प्रभावलय अतिशय तेज युक्त है। तीनों लोक में जितने भी कांतिवान- चमकदार जीवा जीव तत्व है । उनकी प्रभा को भी तिरस्कृत …

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22 दिसंबर | सामने आ गयाः मदोन्मत्त हाथी

22 दिसंबर सामने आ गयाः मदोन्मत्त हाथी जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म. सा. करो प्यारे प्रभु भक्ति अगर संसार तिरना है। प्रभु की भक्ति इंसान को संसार रूपी समुद्र से तिराने वाली बन सकती है। सबसे बड़ा समुद्र- संसार समुद्र ही है। इससे बडा कोई समुद्र नहीं है। जिसके अन्दर 84 लाख योनियाँ होती है। …

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21 दिसंबर रैया

21 दिसंबर रैया दिव्य वाणी जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात संतानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा। गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता, दिव्या दिवः पतति ते वयसां ततिर्वा आपके महा अतिशय कारी मुख से जो दिव्य देशना के रूप में वचन बाहर आते हैं तब सुगंधित जल की बूंदों से मुक्त सुखद और मंद वायु के झोंकों के साथ बरसने वाले मंदार, सुंदर,नमेरु, सुपारिजात, …

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20 दिसंबर, खिलचियां जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म.सा.

20 दिसंबर, खिलचियां जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म.सा. दुंदुभी नाद श्लोक नंबर 32 गम्भीर-तार-रवपूरित-दिग्विभागस्- त्रैलोक्यलोकशुभसंगमभूतिदक्षः सद्धर्मराजजयघोषणघोषकः सन्, खे दुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी | गंभीर, तेज फिर भी मधुर आवाज से दसों दिशाओं को पूरित करने वाली तीन लोक के जीवों को शुभ सभागम की विभूति वैभव देने में सक्षम सुधर्म के राजा तीर्थंकर की यह …

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19 दिसंबर जंडियाला गुरू सोने के कमल

19 दिसंबर जंडियाला गुरू सोने के कमल जैनाचार्य श्री ज्ञानचन्द्र जी म.सा. चरम तीर्थकर प्रभु महावीर ने समस्त आत्माओं का हित व- कल्याण करने के लिए दिव्य देशना देना प्रारंभ किया, प्रभु- महावीर की वाणी को जीवन में उतारने की लिए, गुणानुवाद करना आवश्यक हो जाता है। जैन शास्त्रों में सर्वप्रथम विनय बतलाया है। विनय …

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18- दिसंबर रविवार, जंडियाला गुरु देवलोक के नाथ है- गणधर

18- दिसंबर रविवार, जंडियाला गुरु देवलोक के नाथ है- गणधर “भक्त के द्वारा भगवान का स्मरण आवश्यक माना जाता है। क्योंकि जिस प्रकार का मन में चिंतन हम करेंगे उसी प्रकार का परिणमन होना शुरू हो जाता है, जैसे आपके विचार होंगे आपकी आचरण क्रिया भी उस रूप में बदलती चली जाएगी, Science कहती है …

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17 दिसंबर शनिवार होटल हवेली जंडियाला गुरु

17 दिसंबर शनिवार होटल हवेली जंडियाला गुरु तीन छत्र प्रभु के जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म.सा. प्रभु सुमिरन में सार……. किश्ती को पार लगाने के लिए प्रभु का स्मरण आवश्यक माना गया है । बल्कि यह माना जाए कि सबसे पहला काम प्रभु का स्मरण है । क्योंकि व्यक्ति कोई भी काम करता है तो …

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