20 दिसंबर, खिलचियां जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म.सा.

20 दिसंबर, खिलचियां
जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी म.सा.
दुंदुभी नाद
श्लोक नंबर 32
गम्भीर-तार-रवपूरित-दिग्विभागस्-
त्रैलोक्यलोकशुभसंगमभूतिदक्षः
सद्धर्मराजजयघोषणघोषकः सन्,
खे दुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी |
गंभीर, तेज फिर भी मधुर आवाज से दसों दिशाओं को पूरित करने वाली तीन लोक के जीवों को शुभ सभागम की विभूति वैभव देने में सक्षम सुधर्म के राजा तीर्थंकर की यह घोषणा को घोषित करने वाली दुंदुभी आपके यश का मंथन करती हुई, आकाश में दिव्य घोषणा करती है। तीर्थंकर देव महान अतिशयकारी होते हैं यह तो आप सभी जान ही चुके हैं। जब भी वो चलते हैं तो उनके आगे गंभीर तेज मधुर आवाज करता हुआ धर्मचक्र चलता है। उसकी आवाज तेज मधुर और आनंदकारी होती है। उसकी गूंज हृदय यंत्र को झंकृत करने वाली होती है। यह एक ऐसा अनहदनाद होता है जो व्यक्ति के रोम-रोम में आनंदकारी होता चला जाता है। तीर्थंकर देव चाहे किसी भी क्षेत्र में विचरण करें लेकिन उनका प्रभाव तीनों लोक में रहता है।
तभी णमोत्थुणं पाठ में आया है‌।
लोगनाहाणं- लोक के नाथ
लोगहिआणं- लोक का हित करने वाले
लोग पइवाणं- पूरे लोक में प्रकाश देने वाले अनुपम प्रदीप
लोगपज्जोअगराणं- पूरे लोक में प्रद्योत करने वाले।
यह सब विशेषण पूरे विश्व में फैल रही उनकी दिव्यता को प्रकाशित करते हैं। यही कारण है कि तीन लोक के प्राणियों की अंतरात्मा को जगाने में सक्षम हैं। यह बात अलग है जो आत्माएं अभवी हैं, मिथ्यात्वी हैं, दूरभवी हैं, वो ना जाए तो यह दोष प्रभु की भूतिदक्षता का नहीं है। जिस प्रकार उल्लू सूर्य की किरणों को भी अंधेरे के रूप में देखता है तो यह दोष उसी का है। खरगोश आंखें बंद करके सोचे कि मुझे शिकारी नहीं देखता तो यह दोष उसी का है। प्रभु सत्य, सच्चे धर्म की घोषणा करने वाले हैं। क्योंकि वो वितरागी हैं। उनमें किसी के प्रति जरा सा भी राग नहीं है और जरा सा भी द्वेश नहीं है।
जो किसी के मोह में नहीं है वही सच्ची बात कह सकता है। वही स्थिति है वितराग देव तीर्थंकर की। सुधर्म की सदा जीत होती है। सत्यता के सूर्य को बाहर आने में बादलों की कितनी भी बाधाएं आए वो 1 दिन बाहर आकर ही रहता है। इसी तरह तीर्थंकरों का सुधर्म, शाश्वत संदेश को प्रसारित करने वाला होता है। जो भी भव्यात्मा उसे अपनाती है उसे पारगामी बना ही देता है। ऐसे महा यशस्वी प्रभु की यशो गाथा के – आकाश में देवी देवता, तो धरती पर पशु पक्षी इंसान सभी गाते हैं। जिसे व्याख्याकारों ने दुंदुभी की आवाज के रूप में व्याख्यित किया है। सोचने वाली बात यह है कि जिनके विचरण क्षेत्र में 25-25 योजन याने 100-100 कोस अर्थात 200-200 मिल मतलब 640 किलोमीटर तक सारे उपद्रव रोग प्राकृतिक आपदाएं शांत हो जाती थी। जब उनके शुद्ध परमाणुओं का इतना लंबा प्रभाव हो रहा हो और वो जहां भी पधार रहे हो, उनकी सेवा में अहर्निश देवता हाजिर हो तो उनकी यश दुंदुभी तो स्वत: ही बज जानी है।
आज भरत क्षेत्र के इस क्षेत्र में तीर्थंकर तो है नहीं पर तीर्थंकर की नकल करने वाले छद्मस्थ साधु जरूर हैं। वो भी अपना झूठा अतिशय प्रकट करने में तीर्थंकरों के अतिशय का सहारा लेते हैं। कई आचार्य अपने आपको तीर्थंकर समान मानकर या अपने शिष्यों द्वारा बताकर अपनी स्तुति णमोत्थुणं के पाठ से करवाते हैं यह कैसी विडंबना है। जब भगवान महावीर छद्म्थ थे, तब उनसे कोई पूछता कि आप कौन हो? तो वे अपने को भगवान, भावी तीर्थंकर ऐसा कुछ ना बताकर भिक्षुक बतलाते थे। जबकि वह भविष्य में तीर्थंकर बने हैं। लेकिन आज के तथाकथित महारथियों के हाल ही कुछ और हैं। कहां तो आचार्य श्री श्रीलाल जी म. सा. फरमाते थे कि- उस भोले साधु को गैलियां मत कहो। वो मेरे से भी पहले मोक्ष में जा सकता है और कहां आज के तथाकथित क्रियावादी साधक जो अपना ही राग अलापने में लगे हैं। आज के साधक छद्मस्थ हैं । इस भव में तो वितरागी होंगे ही नहीं तो फिर वितरागता के अतिशय गुणों का अपने ऊपर आरोपण करने वाले प्रशंसात्मक वचनों की अभिव्यक्ति को रोकने का प्रसंग है। हमने सुना है कि- महान क्रांतिकारी आचार्य को किसी भक्त ने बाल ब्रह्मचारी विशेषण से संबोधित किया तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि दीक्षा लेने के बाद तो सभी ब्रह्मचारी होते हैं। पर गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचारी रहे हो यह जरूरी नहीं। मुझे बाल ब्रह्मचारी नहीं कहा जाए। मैं बाल ब्रह्मचारी नहीं हूं । अर्थात में बचपन से ब्रह्मचारी नहीं हूं। यह आत्मबल था, अपने दोष को सत्यता के साथ प्रकट करने का। तभी उनकी आत्मा में सद्धर्म प्रतिस्थापित होता है। आज तो चारों तरफ अपने यश की दुंदुभी बजाने में अधिकांश साधक लगे हैं। उन्हें तीर्थंकर देवों की साधना को समझने की आवश्यकता है।
धर्म प्रभावना
19 दिसंबर को टांगरा के पैलेस में ही विराजना रहा। शाम को ही जब विहार की बातचीत चली तो आचार्य प्रवर ने फरमाया कि- 4 किलोमीटर पर स्थित खिलचियां ही जाने का विचार है। पर संतों का विचार था कि इतना नजदीक क्यों रुकना। आगे बढ़ा जाए पर आचार्य श्री का मन नहीं था। उन्होंने 4 किलोमीटर तक ही जाने की बात रखी। सभी ने हां भर ली।
20 दिसंबर को प्रकृति का हाल जब देखने को मिला तो आचार्य श्री की भविष्यद्रष्टा की स्थिति समझने में आ गई। करीब कि 11:30 बजे तक धुंध चलती रही। विहार रुका रहा। धुंध हटने पर 4 किलोमीटर पर स्थित खिलचियां गांव में पदार्पण हुआ। आज शाम को जैन कॉलोनी जालंधर के प्रधान श्री धर्मवीर जी, श्री अर्पण जी, श्री कृतिका जी, अर्क जी आदि उपस्थित हुए। कुछ देर तक धर्म चर्चा का लाभ लिया।
साध्वीरत्ना महिमा श्री जी म.सा. कपुरथला एवं साध्वीरत्ना श्री शुभा श्री जी म. सा. आदि रैया गांव पधार गई हैं। सभी के सुख साता है।
श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ सदा जयवंत हो